वाराणसी: काशी के विवादित ज्ञानवापी परिसर में 'तहखाना' में से एक में 'पूजा' के लिए दी गई अनुमति पर प्रतिक्रिया देते हुए, जमात-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष ने शनिवार को कहा कि अब "विश्वास टूट रहा है" और जो अजीब बात हो रही है वह यह है कि कोर्ट यह भी देख रहा है कि भीड़ किस तरफ ज्यादा है। आज एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए जमात के मोहम्मद सलीम (उपाध्यक्ष) ने कहा कि देश में धार्मिक स्थलों और संस्थानों की सुरक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि, "हमारे देश में लोकतंत्र है। इसमें हम सब मिलकर सरकार चुनते हैं। इसके बाद देश में कानून व्यवस्था बनाए रखना और नागरिकों की सुरक्षा के लिए अहम इंतजाम करना भी सरकार की जिम्मेदारी है। यह देश के धार्मिक स्थलों और संस्थानों की सुरक्षा के लिए भी जिम्मेदार है। सिर्फ मुसलमान ही नहीं, बल्कि सभी लोग मिलकर सरकार को याद दिलाएंगे कि कानून के मुताबिक काम करना उनकी जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा कि, ''अब भरोसा टूट रहा है, मगर यहां के लोग भी हमारे हैं और सरकार भी हमारे वोट से आई है। अजीब बात ये हो रही है कि कोर्ट भी देख रहा है कि भीड़ किस तरफ ज्यादा है और वो क्या सोच रहे हैं। यह हमारे देश और लोकतंत्र की कमजोरी है।" इसके अलावा बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए मलिक मोहतसिम खान (वीपी) ने कहा कि मौजूदा सरकार के रवैये के मुताबिक वह बाबरी मस्जिद गिराने वालों को इनाम देगी। उन्होंने कहा कि, "सरकार अपने उद्देश्यों के मुताबिक काम कर रही है। देश की जनता को सोचना चाहिए कि क्या ये सरकार कानून के मुताबिक काम कर रही है?"
इस बीच, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को वाराणसी कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें हिंदू पक्ष को ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में प्रार्थना करने की अनुमति दी गई थी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने यहां राष्ट्रीय राजधानी में मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि, "हम गायनवापी मस्जिद के 'तहखाना' में रातोंरात लोहे की ग्रिल तोड़ने और मूर्तियां रखे जाने की अचानक हुई पूजा पर गहरा खेद और चिंता व्यक्त करते हैं।'' बता दें कि, तहखाने में 1993 तक पूजा हुआ करती थी, लेकिन मुलायम सरकार ने उसमे ताला लगवा दिया था, अब 31 साल बाद हिन्दुओं को वापस कोर्ट द्वारा वहां पूजा करने का अधिकार मिला है, तो मुस्लिम पक्ष आरोप लगा रहा है कि कोर्ट भीड़ देखकर काम कर रही है। बाबरी मस्जिद के समर्थक रहे इतिहासकार इरफ़ान हबीब खुलकर मानते हैं कि हाँ, काशी और मथुरा के मंदिर औरंगज़ेब ने ही तोड़े थे, इसके सबूत मौजूद हैं, फिर भी मुस्लिम पक्ष मानने को तैयार नहीं। बाबरी की खुदाई करने वाले पुरातत्वविद के के मुहम्मद भी कह चुके है कि मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं, मुस्लिम पक्ष उनकी बातों को भी नकारता है। हाल ही में ज्ञानवापी में जो ASI सर्वे हुआ, उसमे भी दो मुस्लिम अफसर थे, जिन्होंने सबूत अपनी आँखों से देखे थे, फिर भी कोर्ट पर दोष मढ़ा जा रहा है। ये सोचने वाली बात है कि खुद औरंगज़ेब के जमाने में लिखी गई मासिर ए आलमगीरी (लगभग सन 1700) में काशी और मथुरा के मंदिरों को तोड़ने का जिक्र है, मगर मुस्लिम पक्ष इसे झुठला रहा है, तो इसके पीछे कारण क्या है ? क्या वो जानबूझकर सच को झूठ साबित करने की कोशिश कर रहा है और इसके लिए अदालतों को भी झूठा कह रहा है ?
Darbari Historian Irfan Habib accepts that Mughals destroyed our temples & built mosques over it but he thinks it’s wrong to reclaim it.
— Mr Sinha (@MrSinha_) January 17, 2024
As per his logic, if we destroy his home & build something at that place, he will loose his right to reclaim it?????
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क्योंकि, पहले तो मुस्लिम पक्ष ने ज्ञानवापी के सर्वे का विरोध किया, सुप्रीम कोर्ट तक गए, आखिर सर्वे नहीं रोक पाए तो तहखाने की चाबियां देने से इंकार किया। फिर कोर्ट को दखल देना पड़ा, सर्वे हुआ, तो कहा वजूखाने का पानी खाली नहीं होगा, मशक्कत के बाद पानी खाली करवाया गया, तो वहां 'शिवलिंग' मिला, मुस्लिम पक्ष उसे फव्वारा बताने लगा। जब कहा गया कि फव्वारा चलाकर दिखा दो, तो कह दिया गया कि पुराना है। हिन्दू पक्ष ने शिवलिंग की वास्तविक उम्र जानने के लिए उसकी कार्बन डेटिंग की मांग की, तो मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट जाकर उसका भी विरोध किया। हाल ही में हुए ASI सर्वे में अरबी/फ़ारसी भाषा में एक शिलालेख मिला, जिसमे लिखा था कि औरंगज़ेब ने इस मंदिर को तोड़ा और मस्जिद बनाई, लेकिन उसकी लिखावट मिटाने के लिए उसे खुरच दिया गया था। अब वो किसने खुरचा होगा, ये समझने में ज्यादा दिमाग नहीं लगेगा ?? हालाँकि, ASI के पास उस शिलालेख की पुरानी तस्वीर थी, जिसमे साफ़ लिखा था की औरंगज़ेब ने ही मंदिर तोड़ा है। तमाम सबूतों के बावजूद मुस्लिम पक्ष, कोर्ट से लेकर, सरकार तक को दोष देने के लिए तैयार है, मगर सच्चाई कबूलने के लिए नहीं ? आखिर क्यों ?
वहीं, ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष के वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने विश्वास जताया कि ज्ञानवापी आदेश को चुनौती देने वाली मस्जिद इंतेज़ामिया कमेटी द्वारा दायर याचिका निश्चित रूप से अदालत द्वारा खारिज कर दी जाएगी। उन्होंने कहा कि, "अदालत ने मस्जिद इंतजामिया कमेटी के वकील एसएफए नकवी से पूछा था कि 17 जनवरी 2024 के मूल आदेश को चुनौती क्यों नहीं दी गई? अदालत ने कमेटी से पहले 17 जनवरी के अदालत के आदेश को चुनौती देने को कहा था।" उन्होंने कहा, "मस्जिद इंतेजामिया कमेटी गलत रास्ता अपना रही है, वह सीधे सुप्रीम कोर्ट जा रही है, जबकि उसे पहले हाई कोर्ट जाना चाहिए। ज्ञानवापी आदेश को चुनौती देने वाली मस्जिद इंतेजामिया कमेटी द्वारा दायर याचिका निश्चित रूप से खारिज कर दी जाएगी।"
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