हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है. ऐसे में कहते हैं कि ये वहीं दिन है जब भगवान विष्णु योग निद्रा से चार माह के बाद जागते हैं और इस एकादशी के पहले पूरे चार महीने तक सभी शुभ व मांगलिक कार्यों पर रोक लगी होती है जो इस दिन खुल जाती है और फिर से सारे शुभ कामों की शुरूआत हो जाती है. आप सभी को बता दें कि इस एकादशी को हरि प्रबोधिनी, देवोत्थान भी कहते हैं और इस खास दिन पर ही तुलसी विवाह भी किया जाता है. अब आज हम आपको बताएंगे उस खास पूजन के बारे में जिनका बिना तुलसी विवाह अधूरा माना जाएगा.
जी दरअसल इस दिन कुछ विशेष देवों की आराधना जरुरी होती है जिनके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं. जी दरअसल शास्त्रों के मुताबिक़ देवों के सोने और जागने का अन्तरंग संबंध आदि नारायण भगवान सूर्य वंदना से हैं, क्योंकि सृष्टि की सतत क्रियाशीलता सूर्य देव पर ही निर्भर है और सभी मनुष्यों की दैनिक व्यवस्थाएं भी सूर्योदय से निर्धारित मानी जाती है. इसी के साथ ऐसा कहा जाता है यह प्रकाश पुंज है इस वजह से सूर्य देव को भगवान श्री विष्णु जी का ही स्वरूप माना गया है, और प्रकाश को ही परमेश्वर की संज्ञा दी गई है.
इसी वजह से देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु सूर्य के रूप में पूजे जाते हैं, जिसे प्रकाश और ज्ञान की पूजा कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण के विराट रूप की पूजा की जाती है लेकिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ इस दिन तुलसी व सूर्य नारायण की पूजा भी आवश्यक मानी जाती है और इनकी पूजा के बिना तुलसी विवाह अधूरा माना जाता है.
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