अपने ही हाथों से अपनी ज़िंदगी को ख़त्म करना बड़ा मुश्किल काम होता है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से यह काम मानो एक खेल बन गया हो. इंसान अपने ही हाथों अपनी ही जान लेने पर उतारू हो गया है. बीते दिनों जहां बॉलीवुड के दमदार अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने फांसी के फंदे को गले लगा लिया था, वहीं अब टीवी जगत के मशहूर अभिनेता समीर शर्मा ने भी फांसी के फंदे को गले लगाकर इस दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह दिया है. इसके बीच भी कई आम और ख़ास ज़िंदगियों ने यह कदम उठाया है. लेकिन इसके साथ ही एक बार फिर सवाल यह उठता है कि क्यों चकाचौंध भरी ज़िंदगी जीने वाले ये सितारे अचानक से गहरे अंधकार में समा जाते हैं, जहां से ये कभी वापस निकलकर न आ सके.
हमें यहां दो बातें समझने की आवश्यकता है. पहली यह है कि हम इस गलतफहमी में उलझकर रह जाते हैं कि फलाना एक चमकता हुआ सितारा है, लाखों दिल उससे प्यार करते है या उसके पास सब कुछ है वो क्यों आत्महत्या करेगा. दूसरी बात यह है कि हम पर्दे पर उनके किरदार उनकी चाल-ढाल के हिसाब से उन्हें अपने हिसाब से समझने लगते हैं. हम यह भूल जाते हैं कि पर्दे की ज़िंदगी और असल ज़िंदगी में बहुत फर्क होता है.
पर्दे पर हंसता-मुस्कुराता हुआ नजर आने वाला चेहरा हो सकता हो असल ज़िंदगी में किसी ग़मगीन किरदार में जी रहा हो. ये मानव जीवन है तकलीफ़ आती है तो उसका समाधान भी मौजूद होता है. हालांकि किसके जीवन में कब,कहां,क्या, कैसे और क्यों हो रहा है इस बात का अंदाजा किसी के लिए भी लगाना बहुत मुश्किल काम होता है. पर्दे पर किरदार निभाते-निभाते कुछ सितारे असल ज़िंदगी के किरदार से हार बैठते हैं और वे एक ऐसा कदम उठा लेते हैं, जिसके बारे में वे खुद भी ये जानते हैं कि यह अपराध है. लेकिन फिर भी वे इस अपराध को करते हैं और इस चमकती-दमकती दुनिया से अचानक ही गहरे अंधकार में प्रवेश कर जाते हैं. जब कभी जीवन में इस तरह की स्थिति जन्म ले तो इंसान को घर-परिवार, भविष्य के बारे में सोचना चाहिए और इस विचार को त्याग देना चाहिए. इसमें कोई दो राय नहीं है कि जीवन का अंतिम लक्ष्य मृत्यु है, लेकिन पहले ठीक से इसे जिया तो जाए.
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