26 जनवरी को राजपथ पर होने वाली गणतंत्र दिवस परेड़ की झांकी में इस बार हिमाचल के कुल्लू के दो देवरथ और 30 देवलु अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे की झलक पेश कर सकते है । देवरथों की शोभा बढ़ाने के लिए ढोल, नगाड़े, करनाल, नरसिंगों को बजाने वाले बजंतरी भी साथ हो सकते है । दोनों देवताओं के साथ कुल 30 देवलु भी हो सकते है । वही झांकी के माध्यम से कुल्लू दशहरा की देव संस्कृति को दिखाया जा सकता है । झांकी में मौजूद होने के लिए देवसदन के म्यूजियम में रखे दो दो देवरथों को दिल्ली ले जाया गया है। इसके अलावा राजपथ पर दिखने वाली झांकी में सभी देवताओं के देवरथों को दिखाना संभव नहीं था।
राजपथ पर दिखने वाली कुल्लू दशहरा की झांकी में जहां देवताओं के रथ दिखाए जाएंगे। इसके अलावा देवताओं के साथ निशानदार, छतरी, ढोल, नगाड़, करनाल, नरसिंगों, गूर, पुजारी भी होंगे। जिला भाषा अधिकारी सुनीला ठाकुर ने कहा कि दिल्ली में होने वाली झांकी के लिए देवसदन के म्यूजियम में रखे दो देवरथों को दिल्ली ले जाया गया है। इसके साथ 30 सदस्यों का दल भी दिल्ली गया है। इसके अलावा भाषा और संस्कृति विभाग के सहायक निदेशक और नोडल ऑफिसर राजकुमार सकलानी ने कहा कि राजपथ में इस बार विश्व प्रसिद्ध कुल्लू दशहरा की झांकी प्रदर्शित की जा रही है।
इसके अलावा कुल्लू दशहरा के लिए 369 साल पहले राजा जगत सिंह ने देवताओं को बुलाने के लिए न्योता देने की परंपरा शुरू की जो आज भी चली आ रही है। बिना न्योते के देवता अपने मूल स्थान से कदम नहीं उठाते है । वर्ष 1650 में तत्कालीन राजा जगत सिंह की ओर शुरू किया कुल्लू दशहरा कई परंपराओं और मान्यताओं को समेटे हुए है। 369 सालों से पहले राजवंश और अब प्रशासन हर बार 300 के लगभग घाटी के देवी-देवताओं को दशहरे का न्योता देता आ रहा है।
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