तेज़ाब से नहलाकर मार डालना समझते हो? वो परिवार फिर 'लालू' की शरण में आया..!

तेज़ाब से नहलाकर मार डालना समझते हो? वो परिवार फिर 'लालू' की शरण में आया..!
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पटना: 1990 से 2005 के बीच बिहार में लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी का शासनकाल रहा, जो जंगलराज का प्रतीक बना। इसी दौर में सीवान में एक गुंडा, मोहम्मद शहाबुद्दीन, एक समानांतर सरकार चलाता था। आम जनता से लेकर पुलिस तक, जो भी इस गुंडे के आदेशों का पालन करने से इंकार करता, उसे सजा मिलती थी। वह अपनी खुद की अदालत लगाकर फरमान जारी करता था। एक बार, रंगदारी देने से इनकार करने पर, उसने चंदा बाबू के दो बेटों को तेजाब से नहला कर मार डाला था। इस मामले के गवाह रहे उनके तीसरे बेटे की भी हत्या कर दी गई थी। वो भी तब जब वो शःब्दुद्दीन के खिलाफ गवाही देने कोर्ट जा रहा था। 

शहाबुद्दीन का संबंध पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से था, और उसके घर से पाकिस्तान में बने हथियार भी मिले थे। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष चंद्रशेखर की हत्या में भी उसका नाम सामने आया था। इन सभी गंभीर आरोपों के बावजूद, शहाबुद्दीन विधायक और सांसद बना, जो लालू प्रसाद यादव की ‘कृपा’ का परिणाम था। उसने सुनिश्चित किया कि मुस्लिमों का वोट राजद को ही मिले, जिससे लालू का राजपाट सुरक्षित रहे।

 

जब बिहार में सुशासन की शुरुआत हुई, तब शहाबुद्दीन को कानून का सामना करना पड़ा और जनता ने उसे और उसके राजनीतिक संरक्षकों को हटा दिया। 2021 में कोरोना से उसकी मौत हो गई, लेकिन उसके परिवार ने अपनी राजनीतिक स्थिति को बनाए रखने की कोशिश की। उसकी पत्नी हिना शहाब और बेटे ओसामा ने कई प्रयास किए, लेकिन उन्हें राजनीतिक जमीन नहीं मिली।

 

हाल ही में, शहाबुद्दीन के परिवार ने फिर से लालू यादव की शरण ली है, विशेष रूप से 2025 के विधानसभा चुनावों की तैयारी के मद्देनजर। राजद अब प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम से अपने मुस्लिम वोट बैंक को बचाने के लिए चिंतित है। हिना और ओसामा की वापसी को मुस्लिम वोटों को एकत्र करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर इस गठबंधन को साझा करते हुए लिखा है कि "हम जीत रहे हैं," जो इस बात का संकेत है कि यह एक तरह का पुनर्मिलन है जो जंगलराज के अतीत से जुड़ा हुआ है। बिहार में इस राजनीतिक बदलाव को लेकर चिंता जताई जा रही है, क्योंकि यह उन लोगों के लिए खतरा बन सकता है जो गुंडागर्दी के खिलाफ खड़े होते हैं। नीतीश कुमार की राजनीतिक रणनीतियों के बीच, यह स्पष्ट नहीं है कि बिहार वास्तव में जंगलराज के अंधेरे दौर को पीछे छोड़ चुका है।

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