यह तो सभी जानते हैं कि प्राचीन ऋषि मुनियों व आचार्यों ने सिद्धि विशेष के लिए माला का नियम बनाया है. मन्त्र जप में, जप माला पर समस्त जपक्रिया एवं उसकी सफलता निर्भर रहती है. मन्त्र जप में जपों की गणना हेतु तो माला का उपयोग किया जाता है.लेकिन बहुत कम लोगों को जानकारी है कि विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अभीष्ट इष्ट से जुड़ी अभीष्ट पदार्थों से निर्मित मालाएं उपयोग में लाई जाती है.जिनका अपना प्रभाव होता है.मालाएं तीन प्रकार की होती हैं - वर्ण माला ,कर माला और मणि माला.
इनमें सबसे बढ़िया मणिमाला है , जिससे जप करने के निर्देश दिए गए हैं.मन्त्र साधना में उपयोग होने वाली मालायें दूसरे पूजन योग्य पदार्थों जैसे तुलसी, रुद्राक्ष, कमलगट्टा, मोती, स्फटिक, चांदी, सोना, शंख, पुत्रजीवा, राजमणि, वैजयन्ती अथवा रुद्राक्ष आदि के दानों से निर्मित की जाती है. ये मालाएं पहनी जा सकती है और यह माला दानों को एक सूत्र में पिरोकर इकट्ठा रखती है .इसी कारण इन्हें मणिमाला कहा जाता है.
आपको बता दें कि विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अलग - अलग माला का उपयोग किया जाता है.धन [पाने के लिए मूंगा की माला. शत्रुनाश के लिए कमलगट्टे की माला. गणेशजी की पूजा में हाथीदांत की माला. पाप नाश के लिए कुश की जड़ से बनी हुई माला.सन्तानलाभ हेतु पुत्रजीवा माला.अभीष्ट सिद्धि अथवा पुष्टिकर्म हेतु चांदी की माला. वैष्णव मत की साधना अर्थात राम भक्ति, कृष्णभक्ति एवं विष्णु भक्ति हेतु तुलसीमाला और यक्षिणीसाधना अथवा भैरवी विद्या की सिद्धि हेतु, मूंगा, सोना, शंख, मणि अथवा स्फटिक की माला का उपयोग किया जाता है .
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