मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में महाविकास अघाड़ी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली महायुति ने शानदार प्रदर्शन करते हुए बहुमत से भी अधिक 235 सीटें हासिल की हैं। वहीं, महाविकास अघाड़ी को केवल 49 सीटें मिलीं। इस गठबंधन में शिवसेना (यूबीटी) को 20 सीटें, कांग्रेस को 16 और एनसीपी (शरद पवार गुट) को सिर्फ 10 सीटों पर जीत मिली।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने 128 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सकी। पिछली विधानसभा में मनसे का एक विधायक था, लेकिन इस बार उसकी स्थिति और खराब हो गई, और उसका मौजूदा विधायक भी हार गया। अगर 2019 के विधानसभा चुनाव से तुलना करें, तो उस समय शिवसेना एकजुट थी और उसने 56 सीटें जीती थीं। बाद में पार्टी विभाजन के कारण उद्धव ठाकरे के पास सिर्फ 13 विधायक रह गए। इस चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) को 20 सीटें मिलीं, लेकिन यह पिछले प्रदर्शन के मुकाबले कम है। राज ठाकरे की मनसे का प्रदर्शन भी बेहद खराब रहा, और उसके पास अब कोई विधायक नहीं बचा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मराठी अस्मिता और मराठी लोगों के मुद्दे को लेकर शिवसेना (यूबीटी) और मनसे को एकजुट होने की जरूरत है। दोनों दलों के शुभचिंतकों और नेताओं का भी कहना है कि मराठी समाज के हित में इन दोनों पार्टियों को साथ आना चाहिए। इस बारे में शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है, जिससे यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या चुनावी हार के बाद उद्धव और राज ठाकरे अपने मतभेद भुलाकर एक साथ आएंगे।
राउत ने कहा कि ये प्रश्न सिर्फ राज ठाकरे या उद्धव ठाकरे तक ही सिमट कर नहीं रह जाता है। जो कोई भी महाराष्ट्र से प्रेम करता है उसे एक साथ ही आना चाहिए। चाहे प्रकाश आंबेडकर ही क्यों ना हो, उन्हें भी एक साथ आ जाना चाहिए। क्या आंबेडकर मराठी नहीं हैं? क्या उन्हें महाराष्ट्र को कुछ नहीं देना चाहिए? राउत ने कहा कि संयुक्त महाराष्ट्र के संघर्ष में बाबा साहब अंबेडकर की भूमिका थी। उनका यह भी मानना था कि महाराष्ट्र के मराठी लोगों को एकजुट रहना चाहिए। यही नहीं राउत ने कहा कि महाराष्ट्र की ये स्थिति देखकर जो भी लोग चिंतित हैं, वो एक साथ आ जाएंगे।
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