स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि मैं हजार गलती करने के बाद खुद से प्यार कर सकता हु तो किसी दूसरे की एक गलती पर मैं उससे नफरत कैसे कर सकता हु. बात कुछ सही भी है, खुद सोचिए हम सुबह से लेकर रात तक प्रत्येक दिन कई बार झूठ बोलते है, वो भी इस विचार के साथ कि किसे पता चल रहा है. मगर जब कोई ऐसा हमारे साथ करे और हमे इसकी जानकारी लगे तो हम कितना बुरा मानते है कि सामने वाले व्यक्ति ने हमसे झूठ कहा.
हम हजार कमियो के बाद खुद के वजूद से प्यार करते है, मगर किसी दूसरे व्यक्ति की एक गलती या कमी पकड़ाने के बाद हम उसे आलोचनाओ का शिकार बनाते है, उससे दुरी बना लेते है. उसका बहिष्कार भी करते है. क्या कभी हमने ये सोचा कि की जब यही गलती हम करते है, तब हम खुद का बहिष्कार तो करते नहीं बल्कि खुद की तरफ एक नजर ध्यान भी नहीं देते.
तो क्यों ना इस बार कुछ ऐसा करे कि जब भी मन में यह ख्याल आये की सामने वाले व्यक्ति के प्रति नफरत के भाव आने लगे तो यह सोचे कि हम में भी तो फलां कमी है. जिस दिन नफरत के भाव से स्वयं को दूर रखेगे, सकारात्मकता की और आगे बढेंगे. नफरत हमारे विचारो यहाँ तक की हमारी राय को भी प्रभावित करती है. यदि एक अच्छा इंसान या एक अच्छा स्पीकर बनना चाहते है तो नफरत को मन से हटाना होगा तभी निष्पक्ष हो कर कोई राय कायम कर सकेंगे.
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