जब काल का पहिया घूमता है तो फर्श वाले को अर्श पर और अर्श वाले को फर्श पर लाकर पटक देता है. यही हाल 2007 में देश की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी मानी जाने वाली यूनिटेक के साथ भी हुआ .दस साल तक देश में कारोबार करने वाली इस कम्पनी को सरकार ने अपने हाथ में ले लिया है.यूनिटेक पर हजारों करोड़ का कर्ज है और वह अर्श से फर्श पर आ गई है. ऐसा क्यों हुआ इस पर एक नजर डालते हैं.
उल्लेखनीय है कि 2003 से 2008 के दौरान यूनिटेक कंपनी की विकास दर बहुत ऊँची थी.एक दशक के भीतर कंपनी ने अपने प्रोजेक्ट्स के कारण देश भर में विस्तार पा लिया था.लेकिन चंद्रा परिवार के बुरे दिन 2008 के बाद से तब बिगड़ने शुरू हुए जब यूनिटेक वायरलेस (यूनिटेक की सब्सिडियरी में से एक) ने देश भर में 2 जी स्पेक्ट्रम के लिए टेलिकॉम लाइसेंस लिया.
बता दें कि कंपनी ने घोटाले में फंसे सर्व टेलिकॉम पॉलिसी के तहत लाइसेंस हासिल किया था. वहीं, कंपनी की ओर से किए गए कई निवेश भी घातक सिद्ध हुए.उस साल यूनिटेक ने अपनी कंपनी के 67 फीसदी से ज्यादा स्टेक नॉर्वे की टेलिनॉर को 6,000 करोड़ रुपए में बेचे.2जी घोटाले पर सीएजी की रिपोर्ट आने के बाद राज नेताओं के साथ यूनिटेक के एमडी संजय चंद्रा को भी गिरफ्तार कर लिया.
2008 में प्रॉपर्टी में गिरावट का दौर शुरू हो गया .रियल्टी डेवलपर्स को धन की कमी होने लगी.यूनिटेक की परेशानी दोहरी थी.एक ओर रुपयों की कमी और दूसरी तरफ इसके प्रवर्तक जेल में थे.देशभर में 14,000 एकड़ जमीन खरीदने वाली यूनिटेक ने कुछ संपत्ति सिंगापुर ट्रस्ट में सूचीबद्ध कर एक अरब डॉलर जुटाना चाहा लेकिन मंदी ने खेल बिगड़ दिया और यूनिटेक पर हजारों करोड़ रुपए का कर्ज चढ़ गया.
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