वैसे देखा जाये तो भारत त्योहारो से ज्यादा चुनावो का देश है, जिसमे हर दिन त्यौहार कम मनाये जाते है, किन्तु चुनाव की क्या बात की जाये. एक दिन में दो त्यौहार कभी कभी संयोग से ही आते है किन्तु चुनाव तो एक दो नहीं बल्कि कभी कभी तो इतनी बड़ी तादाद में आ जाते है कि मतदाता को समझ ही नही आता है कि स्याही का निशान कौन सी ऊँगली पर लगवाये. वैसे में अब उत्तर प्रदेश के चुनाव की रोचकता भी सदाबहार गानों की तरह चल रही है. जिसमे कभी फिल्म अभिनेत्री रूठ जाती है तो कभी अभिनेता, और वे दोनों इशारो इशारो में एक दूसरे की गलतिया बताने के साथ उन्हें मनाने की कोशिश करते है.
उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले तैयारियां तो ऐसी चल रही है, जैसे मालवा में जीजा अपने एकलौते साले की शादी में तैयारियां में जुट जाता है. किन्तु इस दौर में सबसे ज्यादा चुनाव से पहले पिता पुत्र के मतभेद को लेकर बोलबाला है, जिसमे अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव अपने रिश्तो को लेकर बहुत ही सजग दिखाई दे रहे है. किन्तू इस बीच कुर्सी आड़े आ रही है. जिसमे वे अपना पिता पुत्र का रिश्ता बखूबी निभाते हुए कुर्सी की दौड़ में एक दूसरे को पीछे धकेलने पर तुले हुए है. हालांकि इस पुरे विवाद की जड़ सिर्फ दो लोगो को माना जा रहा है, जिसमे यह दो नाम रामगोपाल यादव और अमर सिंह के भी हो सकते है.
जन जन से लेकर बहुजन तक, बीजेपी से लेकर डलहौजी तक सारी नीतिया यहा के चुनाव में देखी जा सकती है. किन्तु सबसे ज्यादा उत्सुकता समाजवादी पार्टी के कार्यकर्तों में नजर आ रही है. जिन्हें अभी तक यह पता नही है कि वे तैयारी किसके लिए कर रहे है. खेर इस बात का संतोष है है कि इस समय कबीर दास जी नही है. अगर वे होते तो इस पिता पुत्र के प्यार को कुछ इस तरह बयां करते-
कबीरा कुर्सी एक है, बैठन वाले सोय .
पिता पुत्र कि लड़ाई में, कारण है बस दोय.
कवि- बलराम सिंह राजपूत
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