मोदी-बाइडेन की बैठक से पहले खालिस्तानी संगठनों से मिले अमेरिकी अधिकारी, क्या पका रहा US

मोदी-बाइडेन की बैठक से पहले खालिस्तानी संगठनों से मिले अमेरिकी अधिकारी, क्या पका रहा US
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वाशिंटगन: 20 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेजबानी से ठीक पहले, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के अधिकारियों ने सिख संगठनों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। यह मुलाकात तब हुई जब खालिस्तानी समर्थक संगठनों ने आरोप लगाया कि भारत सरकार विदेशी धरती पर सिखों की आवाज को दबाने की कोशिश कर रही है। कुछ दिनों पहले नेता विपक्ष राहुल गांधी ने भी यही झूठ फैलाया था कि भारत में सिखों को पगड़ी-कड़ा पहनने की और गुरूद्वारे जाने की अनुमति नहीं है। हालाँकि, ऐसी एक भी घटना भारत में दर्ज नहीं की गई है। लेकिन राहुल गांधी और 1984 में सिखों का नरसंहार करने वाली उनकी पार्टी कांग्रेस खुलकर ये झूठ फैला रहे हैं, अब अमेरिका भी इस झूठ को हवा देने लगा है। अमेरिकी अधिकारियों ने इन संगठनों को आश्वस्त किया कि वे अंतरराष्ट्रीय दमन से उन्हें बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

प्रतिनिधिमंडल में अमेरिकन सिख कॉकस कमेटी, सिख गठबंधन और SALDEF (सिख अमेरिकन लीगल डिफेंस एंड एजुकेशन फंड) जैसे संगठन शामिल थे। ये सभी संगठन खालिस्तानी एजेंडे से जुड़े हैं। इस मुलाकात को लेकर अमेरिकन सिख कॉकस कमेटी के प्रीतपाल सिंह ने एक्स पर एक पोस्ट लिखकर अमेरिकी अधिकारियों का आभार व्यक्त किया। यह घटना उस वक्त सामने आई जब खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने एक मुकदमा दायर किया, जिसमें उसने भारत सरकार और NSA अजीत डोभाल सहित शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों पर उसकी हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया। इस पर अमेरिकी अदालत ने भारत के अधिकारियों को तलब किया है।

अमेरिकी प्रतिनिधि एडम शिफ ने 'अंतरराष्ट्रीय दमन रिपोर्टिंग अधिनियम' प्रस्तुत किया है, जिसके तहत अमेरिका में विदेशी सरकारों द्वारा दमन के मामलों की रिपोर्टिंग जरूरी होगी। इस अधिनियम के समर्थन में खालिस्तान समर्थक संगठनों ने आवाज बुलंद की है। हालांकि, सिख गठबंधन जैसे संगठन दावा करते हैं कि वे खालिस्तान पर किसी प्रकार की स्थिति नहीं रखते, लेकिन उनके कई कदम भारत सरकार के खिलाफ रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि ये संगठन अक्सर आतंकवादी संबंधों के लिए बदनाम संगठनों के साथ मिलकर काम करते दिखते हैं, जैसे कि इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC)।

वहीं, SALDEF और सिख असेंबली ऑफ अमेरिका भी इसी तरह की विचारधाराओं से जुड़े हैं। इन संगठनों ने खालिस्तानी आतंकवादियों जैसे हरदीप सिंह निज्जर और अमृतपाल सिंह का समर्थन किया है। SALDEF ने तो भारत सरकार पर निज्जर की हत्या का आरोप लगाया और सोशल मीडिया पर इसकी आलोचना भी की। अब सवाल यह उठता है कि क्या अमेरिका अपने यहां खालिस्तानी आतंकवाद को बढ़ावा देकर भारत के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है ? क्या अमेरिका का उद्देश्य भारत में अस्थिरता पैदा करना और वहां अपनी कठपुतली सरकार बिठाना है? जैसे उसने कुछ ही समय पहले बांग्लादेश में किया है, वैसे ही क्या वह भारत में भी ऐसा ही कुछ करने की साजिश रच रहा है?

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