अमेरिकी राष्ट्रपति ने इंदिरा गांधी को कहा था बूढ़ी चुड़ैल, किसिंजर ने 'बिच' बोलकर किया था अपमान, 34 साल बाद मांगी माफ़ी

अमेरिकी राष्ट्रपति ने इंदिरा गांधी को कहा था बूढ़ी चुड़ैल, किसिंजर ने 'बिच' बोलकर किया था अपमान, 34 साल बाद मांगी माफ़ी
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वाशिंगटन: अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर का 100 साल की आयु में निधन हो गया है। वर्ष 1971 में जब तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान से युद्ध कर बांग्लादेश नाम से एक अलग मुस्लिम देश बनवाया था, उस समय उनकी (इंदिरा) और किसिंजर की तकरार की जमकर चर्चा हुई थी। उस समय इंदिरा गांधी अमेरिका दौरे पर भी गईं थी। अमेरिका के तत्कालीन प्रेसीडेंट रिचर्ड निक्सन और विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने ना सिर्फ इंदिरा पर दबाव डालने की कोशिश की थी, बल्कि मुलाकात से पहले उनके लिए बेहद अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल भी किया था। ये बातचीत आज भी सुर्ख़ियों में हैं। 

दरअसल, 70 के दशक में अमेरिकी डिप्लोमेट के तौर पर किसिंजर की काफी धाक थी। उन्होंने पहले अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के पद पर भी काम किया और फिर विदेश मंत्री बने। किसिंजर को 70 के दशक में भारत के प्रति नकारात्मक पूर्वाग्रह रखने वाला नेता माना जाता था। उन्होंने तत्कालीन भारतीय पीएम इंदिरा गांधी के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए Bitch यानि कुतिया कहा था तो वहीं, भारतीयों को Bastard यानि कमीने बोला था। वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने इंदिरा गांधी को 'बूढ़ी चुड़ैल' कहा था। 

2005 में अमेरिका ने वो टेप सार्वजनिक कर दी थीं, जिसमें भारत और इंदिरा गांधी के बारे में उनकी बातचीत के रिकॉर्ड्स हैं। इसमें वाशिंगटन में 5 नवंबर, 1971 को निक्सन और किसिंजर के बीच चर्चा हो रही है। दरअसल, ये वो दिन है जब इंदिरा गांधी उनसे मुलाकात करने के लिए वाशिंगटन गई हुई थीं। बैठक होने ही वाली थी। इससे पहले किसिंजर और निक्सन के बीच बातचीत में इंदिरा गांधी और भारतीयों पर चर्चा होती है । दोनों इंदिरा गांधी को कुतिया, बूढ़ी चुड़ैल और भारतीयों को कमीने कहते हैं। उन्हें पूर्वी पाकिस्तान (आज बांग्लादेश) में भारत की संभावित कार्रवाई से आपत्ति है। किसिंजर इस चर्चा में इंदिरा गांधी के लिए बार-बार कुतिया शब्द का ही इस्तेमाल करते हैं। ये भी फैसला होता है कि इंदिरा जब मीटिंग के लिए आएंगी, तो उनसे सख्ती से पेश आया जाएगा।

वर्ष 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना दमन बहुत बढ़ गया। यहाँ तक कि, इसका प्रभाव भारत और यहां के लोगों पर भी पड़ने लगा, तब कार्रवाई जरूरी हो गई थी। पाकिस्तानी शासक जनरल याह्या खान अमेरिका के काफी दुलारे थे। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन भी उन्हें बहुत पसंद करते थे। इसलिए उस समय अमेरिका, भारत के खिलाफ पाकिस्तान का साथ दे रहा था। 

अगले दिन की मुलाकात में इंदिरा को सख्त चेतावनी दिए जाने की तैयारी थी। लेकिन बैठक की शुरुआत ही गड़बड़ रही। राष्ट्रपति निक्सन ने हावभाव से जैसी शुरुआत की, पीएम इंदिरा गांधी ने उन्हें नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया। इंदिरा ने पूरी बैठक में कुछ ऐसा ठंडा रुख अख्तियार कर लिया, जैसे उन्हें निक्सन की कोई परवाह ही नहीं हो। निक्सन ने इंदिरा गांधी को चेतावनी दी कि, 'यदि भारत ने पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में सैन्य कार्रवाई की हिम्मत की, तो अंजाम अच्छे नहीं होंगे। भारत को पछताना पड़ेगा।' 

लेकिन इंदिरा ने चेतावनी को नज़रअंदाज़ कर दिया। दरअसल, अमेरिका दौरे से पहले सितंबर में वह सोवियत संघ (रूस) भी गई थीं। भारत को सैन्य आपूर्ति के साथ मास्को के राजनीतिक समर्थन की सख्त आवश्यकता थी। जब वह पहुंची तो पहले दिन USSR के प्रधानमंत्री किशीगन से मुलाकात हुई। उन्होंने साफ कह दिया कि इंदिरा जो बात करने आईं हैं, वह देश के वास्तविक राष्ट्रप्रमुख ब्रेझनेव से ही करेंगी। अगले दिन ब्रेझनेव के साथ बैठक हुई। वर्ष 1971 में इंदिरा ने अमेरिका और USSR के सामने जो रुख अपनाया, वो बेहद नपी-तुली और समझदारी वाली विदेशनीति थी।

खैर अमेरिका से लौटते वक़्त इंदिरा गांधी तय कर चुकी थीं कि अब करना क्या है। इसके 3 दिन बाद ही दिसंबर के पहले सप्ताह में भारतीय फौज ने पूर्वी पाकिस्तान में कार्रवाई शुरू कर दी। पाकिस्तानी सेना के पैर उखड़ने लगे थे। ये खबर अमेरिका पहुंची, तो राष्ट्रपति निक्सन बौखला गए। उन्होंने सोचा भी नहीं था कि उनकी चेतावनी के बाद भी भारत ये कदम उठाएगा। कुंठित निक्सन ने चीन से संपर्क साधा कि क्या वह भारत के खिलाफ एक्शन ले सकता है, चीन इसके लिए राजी नहीं हुआ, क्योंकि उसे भी लगता था कि पूर्वी पाकिस्तान की आज़ादी ही एकमात्र समाधान है।

अब सीधे इंदिरा पर युद्धविराम का दबाव बांया गया। तो भारत से दो-टूक जवाब मिला कि- ऐसा नहीं हो सकता। अमेरिका ने अपने सातवें बेड़े को हिन्द महासागर में पहुंचने का आर्डर दिया। तो सोवियत संघ (रूस) तुरंत भारत की मदद के लिए सामने आकर खड़ा हो गया। उधर इजराइल भी अमेरिकी धमकियों के बावजूद हर बार की तरह भारत को एक सच्चे दोस्त की तरह, हथियार, इंटेलिजेंस आदि से मदद कर रहा था। भारत ने युद्धविराम तो किया, मगर 17 दिसंबर को ढाका में भारतीय फौज के फ्लैग मार्च के बाद। 

ये ऐसा वक़्त था, जब भारतीय सेना चाहतीं, तो पश्चिम में पाकिस्तानी सीमा (आज का पाकिस्तान) के अंदर तक जाकर उसके इलाके, खासकर कश्मीर को हड़प सकती थीं, मगर इंदिरा गांधी ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने मास्को के जरिए वाशिंगटन को संदेश पहुंचाया कि पाकिस्तानी जमीन को कब्जाने का उनका कोई मकसद नहीं है। उन्हें जो करना था, वो उन्होंने कर दिया। बताया जाता है कि भारत ने सबसे पहले बांग्लादेश को एक नए इस्लामी राष्ट्र के रूप में मान्यता दी, मगर ये सही नहीं है बल्कि ये काम छह दिसंबर को भूटान ने सबसे पहले कर दिया था। भारत ऐसा करने वाला दूसरा मुल्क था। बांग्लादेश बनने के एक महीने के भीतर ही संयुक्त राष्ट्र (UN) के अधिकतर देशों ने बांग्लादेश को मान्यता दे दी। इस जीत और सैन्य अभियान ने अचानक इंदिरा गांधी और भारत की छवि पूरे विश्व में बदलकर रख दी।

हालांकि, उस जंग के बाद एक सवाल हमेशा उठता रहा है, वो ये कि 1971 का वो युद्ध भारत ने जीता, बंगाली मुस्लिमों को अपना अलग देश बांग्लादेश मिल गया, पाकिस्तान को उसके 90000 सैनिक वापस मिल गए, लेकिन भारत को क्या मिला ? भारत ने उल्टा बांग्लादेश से भागकर आए लोगों को यहाँ बसाने के लिए अपने देशवासियों पर बंगलदेश टैक्स लगाया, जिससे महंगाई बढ़ी। भारत ने तो हथियार डालने वाले 90 हज़ार पाकिस्तानी सैनिक वापस कर दिए, लेकिन भारत के भी 54 सैनिक थे, जिन्हे जंग के दौरान पाकिस्तान ने बंदी बना लिया था, उन्हें वापस लाने के लिए कोई कोशिश नहीं की गई। उन 54 भारतीय जवानों को आज भी 'Missing 54' के नाम से जाना जाता है, बताया जाता है, कि उनमे से कुछ तो आज भी पाकिस्तानी जेलों में यातनाएं झेल रहे हैं और कई दम तोड़ चुके हैं। कुछ जानकार ये भी कहते हैं कि, 90 हज़ार सैनिकों की रिहाई के बदले भारत न केवल अपने 54 सैनिक वापस ले सकता था, बल्कि पाकिस्तान पर दबाव डालकर कश्मीर मुद्दा भी सुलझा सकता था, उस वक़्त पाकिस्तान पूरी तरह नतमस्तक था, उससे कब्ज़ा किया हुआ कश्मीर वापस लिया जा सकता था। यहाँ तक कि, बांग्लादेश को भी सेक्युलर देश बनाया जा सकता था, क्योंकि इस्लामी देश होने के परिणाम बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) भुगत ही चुका था। आज बांग्लादेश में भी आतंकी संगठन पनप रहे हैं और उनका निशाना भी भारत ही है। लेकिन उस समय राजनितिक समस्याएं थीं, या फिर दूरदर्शिता की कमी, जो भारतीय जवान और भारतीय जमीन दोनों पड़ोसी मुल्क के कब्जे में है। 

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