Fact Check: जय श्री राम न कहने पर असीम को ट्रेन में बेल्ट से पीटा, दाढ़ी पकड़कर हिलाई

Fact Check: जय श्री राम न कहने पर असीम को ट्रेन में बेल्ट से पीटा, दाढ़ी पकड़कर हिलाई
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लखनऊ: बीते कुछ वर्षों में देश में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिसमे मुस्लिमों ने ‘जय श्री राम’ न कहने पर प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाया है, लेकिन बाद में वो आरोप झूठे और प्रोपेगेंडा फ़ैलाने के लिए रचे गए निकले हैं। ये प्रोपेगेंडा इसलिए फैलाया गया, ताकि, देश में एक वर्ग को पीड़ित और दूसरे बहुसंख्यक वर्ग को असहिष्णु और अत्याचारी दिखाया जा सके। हालाँकि, ये वही बहुसंख्यक वर्ग है, जिसने शिवलिंग को प्राइवेट पार्ट कहे जाने पर भी किसी की गर्दन नहीं काटी, एक शिक्षा मंत्री द्वारा अपने पवित्र ग्रन्थ रामचरितमानस को नफरती कहे जाने पर भी सर तन से जुदा जैसे नारे नहीं लगाए। हाँ, अगर उन्हें नाराज़गी प्रकट करनी होती है, तो वे अधिक से अधिक, केवल बॉयकॉट अभियान चलाकर संवैधानिक तरीके से अपना गुस्सा जाहिर करते हैं। लेकिन, भारतीय राजनेता वोट बैंक की खातिर इसी वर्ग के खिलाफ हर प्रोपेगेंडा को जमकर हवा देते हैं और मीडिया भी इसमें अपनी रोटियां सेंकने उतर आता है।  

अब ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से प्रकाश में आया है। कई बड़े मीडिया मीडिया संस्थान खबर चला रहे हैं कि, एक मुस्लिम शख्स के कपड़े उतार कर उसकी पिटाई की गई, क्योंकि उसने ‘जय श्री राम’ कहने से मना कर दिया था। इसका वीडियो वायरल होने के बाद GRP ने 2 लोगों को हिरासत में भी लिया है। ‘आज तक’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आसिम नामक शख्स को चलती ट्रेन में बेल्ट उतार कर पीटा गया और हापुड़ में ट्रेन पर चढ़े लोगों ने ‘चोरी’ का इल्जाम लगा कर ये हरकत की। बता दें कि ये घटना गुरुवार (12 जनवरी) की है, जो दिल्ली से प्रतापगढ़ जाने वाली ‘पद्मावत एक्सप्रेस’ में घटी। ‘आज तक’ ने भी लिखा कि पीड़ित ने ‘जय श्री राम' के नारे नहीं लगाए, तो उसकी पिटाई की गई। 

यह मामला जब AIMIM के चीफ असदुद्दीन ओवैसी के सामने पहुंचा, तो उन्होंने भी इसे हवा देते हुए फ़ौरन वीडियो अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर कर दिया और लिखा कि, 'आसिम हुसैन को ट्रेन में पीटा गया, उनके कपड़े उतरवाए गए और उन्हें JSR के नारे लगाने पर मजबूर किया गया। RSS के मोहन भागवत ने ‘हज़ार साल की जंग’ का जिक्र किया था, क्या ये उसी जंग एक और सबूत है? यूपी पुलिस और जीआरपी को इस घटना पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।' ऐसे में कांग्रेस भी कहाँ पीछे रहने वाली थी, जिसने हिन्दू आतंकवाद का शब्द गढ़ा था और 26/11 आतंकी हमले को पाकिस्तानी साजिश न बताते हुए RSS की साजिश बताया था। 

 

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने इस मुद्दे पर अपना सियासी दांव चल दिया और लिखा कि, 'अभी कल ही तो मोहन भागवत जी कह रहे थे कि मुसलमानों को डरने की ज़रूरत नहीं है? यही है RSS और भाजपा का दोहरा चरित्र, जो कहें बिल्कुल उसका उलटा समझा जाए। मुरादाबाद के जीआरपी एसपी महोदय, महोदय ये दयनीय स्थिति है ट्रेनों में सुरक्षा व्यवस्था की?' उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से ‘ABP News’ का वीडियो शेयर किया, जिसने इस घटना को ‘धर्म के नाम पर गुंडागर्दी’ बताकर खबर चलाई थी।

लेकिन, झूठ के नाम पर प्रोपेगेंडा फैला रहे इन सभी लोगों ने सच्चाई जानने की जरा भी कोशिश नहीं की। हालांकि, आरोप लगाया गया था तो,  उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर इस मामले की जाँच की। मुरादाबाद के रेलवे पुलिस उपाधीक्षक ने बताया कि रात के 11 बजे इस संबंध में शिकायत प्राप्त हुई थी, जिसमें यात्री ने ‘दाढ़ी पकड़’ कर हिलाने, मारपीट करने और ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने के लिए विवश करने का आरोप लगाया। हालाँकि,  रेलवे पुलिस उपाधीक्षक का कहना है कि जबरन धार्मिक नारा लगवाने और ‘दाढ़ी खींचने’ जैसी कोई घटना जाँच के दौरान सामने नहीं आई है।

 

रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने ये भी बताया कि जाँच में पता चला है कि आसिम ट्रेन में एक महिला से छेड़खानी कर रहा था, जिसके बाद वहां मौजूद लोगों ने उसे पीट दिया। मुरादाबाद के GRP इंस्पेक्टर सुधीर कुमार ने मीडिया को बताया कि जिसकी पिटाई हुई है, उसने एक महिला यात्री के साथ छेड़खानी की थी और इसकी हरकतों को देख कर कुछ युवकों ने इसे पीट दिया। ये भी गौर करने वाली बात है कि, इंस्पेक्टर सुधीर कुमार ने भी जबरन ‘जय श्री राम’ नारे लगवाने वाली बात को नकार दिया।

उन्होंने बताया कि उस ट्रेन में पुलिस के जवान भी मौजूद थे, जो गश्त कर रहे थे, उन्हें इस घटना का पता चला। आसिम द्वारा लगाए गए आरोपों पर उन्होंने बताया कि किसी की जुबान पर तो ताला नहीं लगाया जा सकता, मगर असलियत यही है। उन्होंने बताया कि घटना वाले दिन कोई रिपोर्ट नहीं दर्ज कराई गई और अगले दिन आसिम ने पत्रकारों के साथ थाने आकर शिकायत दी थी। इससे स्पष्ट है कि आसिम का इरादा क्या था और उसने खुद को बचाने और पब्लिसिटी पाने के लिए घटना को सांप्रदायिक रंग दे दिया। हालांकि, तब तक ये वीडियो ओवैसी, इमरान प्रतापगढ़ी और मीडिया के जरिए कई लोगों के पास पहुंच चुका था, यानी बहुसंख्यक वर्ग के खिलाफ नफरत फैलाने वालों का काम हो चुका था। गौर करने वाली बात ये भी है कि, जब कश्मीर में ID कार्ड देखकर गैर-मुस्लिमों को गोली मार दी जाती है, तब ओवैसी और कांग्रेस नेता प्रतापगढ़ी जैसी लोगों के मुंह से एक शब्द नहीं निकलता, उल्टा ओवैसी तो उन लोगों को छुड़वाने के लिए पुलिस थाने पहुंच जाते हैं, जो सड़कों पर सर तन से जुदा के नारे लगाते हैं। क्या वो नारे किसी को डराने के लिए नहीं लगाए गए थे ? क्या संविधान सड़कों पर उतारकर सर काटने की धमकियाँ देने की आज़ादी देता है ?  सोचने वाली बात ये भी है कि, अगर श्रद्धा-आफताब जैसा कोई मामला सामने आता है, तो यही नेतागण अपील करते हैं कि, इसे धर्म के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए सच भी है, अपराधी केवल अपराधी ही होता है लेकिन, जब वोट बैंक को आकर्षित करने का कोई मुद्दा दीखता है, तो यही लोग फ़ौरन अपने धर्म का चश्मा निकालकर पहन लेते हैं, फिर उन्हें झूठ और सच का अंतर भी नहीं दीखता

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