पटना: बिहार की राजधानी पटना के पास स्थित गोविंदपुर गांव में सुन्नी वक्फ बोर्ड के एक फरमान ने काफी चर्चा का विषय बना लिया है। इस गांव में 90 प्रतिशत से अधिक हिंदू निवास करते हैं, जो कई दशकों से यहां रह रहे हैं। हाल ही में वक्फ बोर्ड ने दावा किया है कि गांव की जमीन वक्फ बोर्ड की है और इसे कब्रिस्तान के लिए रखा गया है। इसके तहत गांव वालों को 30 दिनों के भीतर जमीन खाली करने का नोटिस जारी किया गया है।
वक्फ बोर्ड का दावा, सारा गांव हमारा
— Panchjanya (@epanchjanya) August 25, 2024
वक्फ बोर्ड की मनमानी एक बार फिर सामने आई है।
वक़्फ़ बोर्ड ने पटना जिले के एक हिंदू गांव को अपना बताया है।
जब उच्च न्यायालय ने बोर्ड से कागज मांगे तो कहा कि नहीं है।
वक़्फ़ बोर्ड ने एक महीने के अंदर गांव को खाली करने का नोटिस भी दे दिया है।… pic.twitter.com/AQL97bs030
गोविंदपुर गांव के निवासी इस फैसले से चिंतित हैं। उनका कहना है कि उनकी जमीन पुश्तैनी है और उनके पास इसके कागजात भी हैं। रामलाल नामक एक निवासी ने बताया कि उच्च न्यायालय ने पहले ही उनके पक्ष में फैसला सुनाया था, लेकिन वक्फ बोर्ड ने अभी तक अपना बोर्ड नहीं हटाया है। राजकिशोर नामक एक अन्य निवासी ने बताया कि पहले भी इस तरह का नोटिस जारी किया गया था, लेकिन कोर्ट ने उसे रोक दिया था। गांव के पिछले हिस्से में बने एक ईदगाह को लेकर यह विवाद है। फतुहा वक्फ बोर्ड के सचिव मोहम्मद हाशिम का कहना है कि आजादी के बाद यह जमीन वक्फ बोर्ड को दी गई थी और यहां कब्रिस्तान बनना है।
95% हिंदू आबादी वालें गांव को मुस्लिम वक्फ बोर्ड ने खाली करने का आदेश दिया है।
— Chandan Sharma (@ChandanSharmaG) August 26, 2024
कोई बताएगा 95% हिंदू कौन सी जाति के हैं?
जब बक्फ बोर्ड का विरोध करता हूं या खत्म करने का बात करता हूं तब मुसलमान से ज्यादा विरोध करने कांग्रेस, SP, RJD, AAP जैसे राजनीतिक दल के हिंदू विरोध करने आते… pic.twitter.com/4OcqjltzFQ
स्थानीय पार्षद जीतेंद्र कुमार ने बताया कि गांव के पूर्व पार्षद वक्फ बोर्ड के सचिव भी हैं और उन्होंने गांव की आधी बस्ती को वक्फ बोर्ड में डाल दिया है। डीएम ने जांच के बाद यह पाया कि यह जमीन गांव के लोगों की पुश्तैनी है और वक्फ बोर्ड का दावा निराधार है। फिर भी वक्फ बोर्ड अपने दावे पर कायम है। गांव के लोग अब इस विवाद को लेकर और भी अधिक परेशान हैं और उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वक्फ बोर्ड किस प्रकार का दबाव या रंगदारी करना चाहता है।
क्या है वक्फ एक्ट और इसके पास कितने अधिकार :-
वक्फ अधिनियम को पहली बार नेहरू सरकार द्वारा 1954 में संसद द्वारा पारित किया गया था। इसके बाद, इसे निरस्त कर दिया गया और 1995 में एक नया वक्फ अधिनियम पारित किया गया, जिसमें वक्फ बोर्डों को और अधिक अधिकार दिए गए। 2013 में, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसे असीमित अधिकार दे दिए। जिसके बाद ये प्रावधान हो गया कि अगर वक्फ किसी संपत्ति पर दावा ठोंक दे, तो पीड़ित अदालत भी नहीं जा सकता, ना ही राज्य और केंद्र सरकारें उसमे दखल दे सकती हैं। पीड़ित को उसी वक्फ के ट्रिब्यूनल में जाना होगा, जिसने उसकी जमीन हड़पी है, फिर चाहे उसे जमीन वापस मिले या ना मिले।
यही कारण है कि बीते कुछ सालों में वक्फ की संपत्ति दोगुनी हो गई है, जिसके शिकार अधिकतर दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के लोग ही होते हैं। वक्फ कई जगहों पर दावा ठोंककर उसे अपनी संपत्ति बना ले रहा है और आज देश का तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक है। रेलवे और सेना के बाद सबसे अधिक जमीन वक्फ के पास है, 9 लाख एकड़ से अधिक जमीन। लेकिन गौर करने वाली बात तो ये है कि, रेलवे और सेना की जमीन के मामले अदालतों में जा सकते हैं, सरकार दखल दे सकती है, लेकिन वक्फ अपने आप में सर्वेसर्वा है। उसमे किसी का दखल नहीं और ना ही उससे जमीन वापस ली जा सकती है। मोदी सरकार इसी असीमित ताकत पर अंकुश लगाने के लिए बिल लाइ है, ताकि पीड़ित कम से काम कोर्ट तो जा सके और वक्फ इस तरह हर किसी की संपत्ति पर अपना दावा न ठोक सके। इस बिल को विपक्ष, मुस्लिमों पर हमला बताकर विरोध कर रहा है। सरकार ने विपक्ष की मांग को मानते हुए इसे JPC के पास भेजा है, जहाँ लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सांसद मिलकर बिल पर चर्चा करेंगे और इसके नफा-नुकसान का पता लगाएंगे।
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