आपने सुना होगा की हमारे देश भारत के अंदर एक और भारत रहता है. ऐसा इसलिए की हर बात पर देश दो धड़ो में बटा हुआ नज़र आता है. चीज पर हम लोगो की कम से कम दो राय जरूर है . एक समर्थन में रहती है और दूसरी उसके ठीक उलट विरोध में. वेलेंटाइन डे भी इससे अछूता नहीं है. दरअसल वैलेंटाइन डे की शुरुआत संत वैलेंटाइन ने की थी. तीसरी शताब्दी में रोम में सम्राट क्लॉडियस का मानना था कि शादीशुदा पुरुषो की बुद्धि कम हो जाती है. इसके लिए सम्राट ने आदेश दिया कि उनके राज्य का कोई भी सैनिक शादी नहीं करेगा. संत वैलेंटाइन ने उनके इस आदेश का विरोध किया तो उन्हें 14 फरवरी 1269 को फांसी पर चढ़ा दिया गया, बस उसी दिन की याद में 14 फरवरी को प्यार के दिवस के रूप में मनाया जाता है.
वेस्टर्न कल्चर में रमते भारत में भी इस दिन का खुमार खूब चढ़ता है. जहां नई सोच के युवा इसे खूब एन्जॉय करते है, वही इसके अमर्यादित रूप के कारण देश भर में इसका पुरजोर विरोध भी जारी है. बेशक अगर किसी से प्रेम है तो जाहिर होना चाहिए, प्रेम कोई बुरी चीज भी नहीं है. बदलते परिवेश में प्रेम करने के तरीके भी बदल गए है, उन्हें भी अपनाया जाना जरुरी है. दुनिया के हर तोर तरीके को अपनाने से ही देश का युवा अपडेट रहते हुए आगे बढ़ेगा. ऐसे में वेलेंटाइन डे मनाना कोई गलत नहीं है. मगर इसके साथ जुडी फूहड़ता, अश्लीलता और नग्नता से भारत और भारतवासियों को परहेज करना चाहिए.
हमसे पहले की पीढ़ी भी एक दूजे से प्यार करते थे और शायद हम से भी ज्यादा ईमानदारी और वफ़ादारी से करते थे. पर मोहब्बत की नुमाइश से बचते थे . इसका कारण उनकी रूढ़िवादिता या शर्म नहीं थी. अपितु वे मर्यादा में बंधे हुए उस पवित्र प्रेम में विश्वास रखते थे जिसे जगजाहिर करना उन्हें नागवार गुजरता था. खेर आज प्रेम के मायने भी बदल गए है. फिर भी कुछ मूल सिद्धांत आज भी अडिग है, अमर है. ऐसा ही एक सिद्धांत है कि प्रेम की पवित्रता मर्यादा में ही है.
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