मंगलवार की शाम एक दर्दनाक घटना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में लहरतारा से चौकाघाट तक बन रहे निर्माणाधीन फ्लाईओवर का एक हिस्सा गिर गया, जिसमें दबकर 18 लोगों की मौत हो गई. एनडीआरएफ की तरफ से रात भर चले रेस्क्यू ऑपरेशन में मलबे में दबे सभी मृतकों और घायलों को निकाल लिया गया. लापरवाही की कई ख़बरें हम पहले भी सुन पढ़ चुके है. उस फ़ेहरिस्त में वाराणसी हादसा भी जुड़ रहा है मगर फर्क तो उन्हें पड़ेगा जिनके अपने दुसरो की लापरवाही की कीमत अपनी जान देकर चुका गए .
अखिलेश सरकार में 1 अक्टूबर 2015 को चौकाघाट-लहरतारा फ्लाईओवर के विस्तारीकरण का शिलान्यास हुआ और फिर तेजी से निर्माण शुरू किया गया. तब से लेकर आज तक इस फ्लाईओवर का निर्माण विवादों में ही रहा. अखिलेश सरकार के दौरान भी कई बार इसकी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) बदली गई. 2017 में योगी सरकार आई तो इस पुल का काम जल्द पूरा करने के निर्देश जारी किए गए. फ्लाईओवर का निर्माण मार्च 2019 तक पूरा होना था, लेकिन अधिकारियों ने वाहनों के दबाव का हवाला देकर अक्टूबर 2019 तक काम को पूरा करने वक्त मांगा. मिल रही जानकारी के मुताबिक 1710 मीटर लंबे इस फ्लाईओवर का निर्माण 30 महीने में पूरा होना था, लेकिन अभी तक इस फ्लाईओवर का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका है. इस फ्लाईओवर प्रोजेक्ट की लागत 77.41 करोड़ रुपये है, जिसके अंतर्गत 63 पिलर बनने हैं. लेकिन अभी तक 45 पिलर ही तैयार हुए हैं.
खबरों की मानें तो 19 फरवरी को यूपी सेतु निगम के परियोजना प्रबंधक के खिलाफ सिगरा थाने में लापरवाही को लेकर मुकदमा भी दर्ज कराई गई थी. कहा जा रहा है कि फ्लाईओवर के निर्माण को लेकर कई बार प्रशासन को भी अलर्ट किया गया था. इस पुल का निर्माण रूट डायवर्ट करके कराई जाए वरना बड़ा हादसा हो सकता है, लेकिन फ्लाईओवर के निर्माण के दौरान रूट डायवर्ट नहीं किया गया.
अब जब आम आदमी की जान की आहुतियां दी जा चुकी है तब जाकर सरकार भी जाग जाने की अपनी जिम्मेदारी निभाती नज़र आ रही है. बहरहाल सवाल आज भी वही है कि सरकार की नज़रो में वोट देते समय सबसे कीमती हो जाने वाले इंसान बाद में इतने सस्ते कैसे हो जाते है .
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