प्रस्तावित वाहन कबाड़ नीति अभी विचाराधीन है और गर इस प्रस्ताव को कैबिनेट में मंजूरी मिल जाती है, तो साल 2005 के पहले के रजिस्टर्ड वाहनों के लिए फिर से रजिस्ट्रेशन और फिटनेस करवाना महंगा पड़ सकता है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देश में इन दिनों 2005 से पहले के रजिस्टर्ड दो करोड़ से ज्यादा वाहन सड़कों पर हैं। इस लिए सरकार के इस कदम के बाद इन वाहनों का दोबारा से पंजीकरण कराना महंगा साबित हो सकता है। नए उत्सर्जन मानकों के मुताबिक नए वाहनों के मुकाबले ये वाहन 10 से 25 फीसदी तक ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। पिछले हफ्ते सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बताया था कि उन्होंने प्रस्तावित निति पर बनाए गए कैबिनेट नोट को मंजूरी दे दी है।
अगर व्हीकल्स मार्किट की बात की जाए तो कि पिछले कुछ सालों में भारत के वाहन बाजार में काफी गति आई है। अगर पुराने प्रदूषण उत्सर्जन मानकों से तुलना करें, तो साल 2005 से पुराने वाहन नए मानकों से 10 से 25 फीसदी तक ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। यहां तक कि अगर इन वाहनों का रखरखाव सावधानी से भी किया जाए, तो भी वे उत्सर्जन मानकों से ज्यादा प्रदूषण करेंगे। साथ ही सड़क सुरक्षा के लिए भी हानिकारक हैं।
इसके साथ ही इस नीति में गाड़ी में लगे एयरबैग्स को वैज्ञानिक तरीकों से डिस्पोजल के साथ साइलेंसर में मिलने वाली धातुओं और रबर का इको-फ्रेंडली तरीके से निपटान किया जाएगा। वहीं गाड़ी से निकलने वाले इंजन ऑयल को जमीन पर नहीं फैंका जाएगा, बल्कि वैज्ञानिक तरीकों से निपटा जाएगा। स्टील मंत्रालय ऐसे स्क्रैपिंग सेंटर्स पर काम कर रहा है और सड़ मंत्रालय इन्हें मान्यता देगा। साथ ही, किसी भी तरह की धोखाधड़ी से बचने के लिए ऐसे वाहनों का डाटाबेस भी बनाया जाएगा।
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