जैसा की हम सभी जानते है कि राम मंदिर और बावरी मस्जिद के विवाद को लेकर फैसला आ चुका है, वही राम मंदिर निर्माण के लिए प्रस्तावित ट्रस्ट के जरिए भारतीयता का संदेश देने की प्रधानमंत्री की इच्छा के लिए सरकार को लंबी माथापच्ची करना पड़ता है. ऐसा माना जा रहा है कि मंदिर आंदोलन की अगुआ विहिप की मांग कर चुके है कि ट्रस्ट में न तो सरकार का कोई प्रतिनिधित्व हो और न ही वैष्णव, शैव और सगुण ब्रह्म को मानने वालों के अलावा किसी अन्य मतावलंबियों को जगह मिलनी चाहिए.
वही पूजा पद्धति को परिवारवाद से बचाने के लिए विहिप ने बद्रीनाथ मॉडल अपनाए जाने की वकालत की है, जहां ब्रह्मचारी रहने तक ही पुजारी पद पर रहना चाहिए. मिली जानकारी के अनुसार विहिप के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राम मंदिर से जुड़े मुकदमे में अहम भूमिका निभाने वाले चंपत राय ने कहा कि ट्रस्ट पर सरकार से बातचीत नहीं हो पाई है. हालांकि हमारा मानना है कि उसमें मंत्रियों या अफसरों को शामिल नहीं किया जायेगा. हम नहीं चाहते कि मंदिर निर्माण की निरंतरता में अधिकारियों के तबादले या मंत्रियों के पद से हटने से बाधा आ रही है. सूत्रों के अनुसार अत: सरकार को मंदिर निर्माण से खुद को दूर रखना होगा. दरअसल पीएम की इच्छा है कि वैश्विक स्तर पर बड़ा संदेश देने के लिए ट्रस्ट में भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति दिखाने के लिए अन्य धर्मों के प्रतिष्ठित लोगों को भी शामिल करना होगा. इसलिए रविवार को एनएसए डोभाल ने भी इस बारे में धर्मगुरुओं का मन टटोला था.
मंदिर की पहली मंजिल तक निर्माण की सामग्री तैयार: वही राय ने बतया कि विहिप सरकार से मंदिर के लिए राम जन्मभूमि न्यास द्वारा तैयार सामग्री और मॉडल स्वीकार करने का अनुरोध करना चाहिए . विहिप के पास मंदिर के पहले मंजिल के निर्माण के लिए सामग्री उपलब्ध है. इससे तुरंत कार्य शुरू कराने में सहायता करेगा.
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