नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय में हलाल प्रमाणित उत्पादों पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगाने और हलाल सर्टिफिकेट वापस लेने की मांग करते हुए जनहित याचिका दाखिल की गई है. याचिका में कहा कहा गया है कि सिर्फ 15 फीसदी हिस्सा मुस्लिम अल्पसंख्यक 'हलाल' भोजन चाहता है. इसलिए बाकी 85 फीसदी लोगों को इसे खाने के लिए विवश किया जा रहा है. याचिकाकर्ता के मुताबिक, यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
याचिकाकर्ता वकील विभोर आनंद ने शीर्ष अदालत में यह जनहित याचिका दाखिल की है. इसमें कहा गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 21 के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों के लिए देश के 85 फीसदी नागरिकों की तरफ से याचिका दाखिल की जा रही है, क्योंकि उनके अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है. देश की 15 फीसदी आबादी के लिए शेष 85 फीसदी लोगों को उनकी इच्छा के लिए विरुद्ध हलाल उत्पादों का उपभोग करने के लिए विवश किया जा रहा है.
जनहित याचिका में कोर्ट को बताया गया है कि हलाल प्रमाणन की प्रक्रिया भारत में 1974 में आरंभ हुई थी. हालांकि यह शुरुआत में मांस उत्पादों तक ही सीमित थी. बाद में इसका विस्तार फार्मास्यूटिकल्स, सौंदर्य प्रसाधन, स्वास्थ्य उत्पाद, प्रसाधन और चिकित्सा उपकरणों समेत अन्य उत्पादों में भी हो गया. याचिका में कहा गया है कि अब हलाल के अनुकूल पर्यटन, चिकित्सा पर्यटन, गोदाम सर्टिफिकेशन , रेस्तरां सर्टिफिकेशन और प्रशिक्षण समेत कई चीज़ें शामिल हैं.
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