नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) विधेयक आज लोकसभा में पेश कर दिया गया। जो राज्य वक्फ बोर्डों की शक्तियों, वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और सर्वेक्षण तथा अतिक्रमणों को हटाने से संबंधित मुद्दों को "प्रभावी ढंग से संबोधित" करने का प्रयास करता है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा ये बिल पेश किया गया।
कांग्रेस, डीएमके, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस और AIMIM सहित तमाम विपक्षी दलों ने विधेयक को पेश किए जाने का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि इसके प्रावधान संघवाद और संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ हैं। जबकि कुछ सदस्यों ने विधेयक को वापस लेने की मांग की, वहीं कई ने सुझाव दिया कि इसे स्थायी समिति को भेजा जाना चाहिए। रिजिजू ने संसदीय समिति द्वारा विधेयक की आगे की जांच के सुझावों पर सहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा कि "हम कहीं भाग नहीं रहे हैं। इसलिए, अगर इसे किसी समिति को भेजा जाना है, तो मैं अपनी सरकार की ओर से बोलना चाहूंगा - एक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) बनाई जाए, इस विधेयक को उसके पास भेजा जाए और विस्तृत चर्चा की जाए।"
केंद्रीय मंत्री रिजिजू ने विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए बिंदुओं का विस्तृत जवाब दिया और कहा कि सरकार कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार के सत्ता में रहने के दौरान गठित एक पैनल की सिफारिशों पर काम कर रही है। उन्होंने मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक, 2024 भी पेश किया, जो मुसलमान वक्फ अधिनियम, 1923 को निरस्त करने का प्रयास करता है। वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024, वक्फ अधिनियम, 1995 का नाम बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995 करने का प्रावधान करता है।
यह स्पष्ट रूप से "वक्फ" को किसी भी व्यक्ति द्वारा कम से कम पांच साल तक इस्लाम का पालन करने और स्वामित्व रखने के रूप में परिभाषित करने का प्रयास करता है। ऐसी संपत्ति का स्वामित्व और यह सुनिश्चित करना कि वक्फ-अल-औलाद के निर्माण से महिलाओं को उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित न किया जाए। इसमें “उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ” से संबंधित प्रावधानों को हटाने, सर्वेक्षण आयुक्त के कार्यों को कलेक्टर या कलेक्टर द्वारा विधिवत नामित डिप्टी कलेक्टर के पद से नीचे के किसी अन्य अधिकारी को सौंपने, केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों की व्यापक संरचना प्रदान करने और मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुसलमानों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का भी प्रावधान है।
उद्देश्यों और कारणों के कथन के अनुसार, विधेयक बोहरा और अगाखानियों के लिए एक अलग औकाफ बोर्ड की स्थापना का प्रावधान करता है। इसमें मुस्लिम समुदायों में शिया, सुन्नी, बोहरा, अगाखानी और अन्य पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करने, एक केंद्रीय पोर्टल और डेटाबेस के माध्यम से वक्फ के पंजीकरण के तरीके को सुव्यवस्थित करने और किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज करने से पहले सभी संबंधितों को उचित सूचना देने के साथ राजस्व कानूनों के अनुसार म्यूटेशन के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया प्रदान करने का प्रावधान है।
विधेयक में बोर्ड की शक्तियों से संबंधित धारा 40 को हटाने का प्रावधान है, जिसके तहत यह निर्णय लिया जाता है कि कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है या नहीं, मुतवल्लियों द्वारा वक्फ के खातों को बोर्ड के समक्ष केंद्रीय पोर्टल के माध्यम से दाखिल करने का प्रावधान है, ताकि उनकी गतिविधियों पर बेहतर नियंत्रण हो सके, दो सदस्यों के साथ न्यायाधिकरण की संरचना में सुधार किया जा सके और न्यायाधिकरण के आदेशों के खिलाफ नब्बे दिनों की निर्दिष्ट अवधि के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की जा सके।' दरअसल, कांग्रेस सरकार ने ये प्रावधान किया था कि वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति पर दावा कर सकता है, ये उसका अधिकार है, लेकिन जिसकी संपत्ति हड़पी गई, वो पीड़ित शख्स कोर्ट में न्याय के लिए अपील नहीं कर सकता, उसे वक्फ ट्रिब्यूनल के पास जाकर ही शिकायत करनी होगी, जिसमे तमाम सदस्य एक ही समुदाय के होंगे। मोदी सरकार इसे बदलने जा रही है। सरकार ने वक्फ संपत्ति (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली), विधेयक, 2014 को वापस लेने का निर्णय लिया है, जिसे फरवरी 2014 में राज्यसभा में पेश किया गया था, जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता में थी।
सीएम केजरीवाल को जेल में ही मनाना होगा स्वतंत्रता दिवस, कोर्ट ने 20 अगस्त तक बढ़ाई हिरासत
2024-25 में 7.2% की रफ़्तार से बढ़ेगी भारतीय अर्थव्यवस्था, महंगाई पर भी RBI ने दिया बयान