नई दिल्ली: 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में जन्मे कैप्टन विक्रम बत्रा भारत के वीर सिपाही थे, कारगिल के युद्ध में देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान देने वाले कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी को नमन करते हुए उन्हे सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. उन्होंने अपने सैन्य जीवन की शुरुआत 6 दिसंबर 1997 को भारतीय सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स से किया था.
उस समय कारगिल युद्ध चल रहा था, इसी कारण लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा की कमांडो ट्रेनिंग खत्म होते ही उनकी पोस्टिंग कारगिल युद्ध क्षेत्र में कर दी गई थी. 1 जून, 1999 को अपनी यूनिट के साथ लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा ने दुश्मन सेना के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया था. शुरुआती जंग में लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा ने हम्प व रॉक नाब की चोटियों पर के दुश्मनों को मारकर इलाके पर कब्ज़ा कर लिया था. उनकी इस बहादुरी से प्रभावित होकर उन्हें लेफ्टिनेंट से कैप्टन बना दिया गया था. इसके बाद कैप्टन विक्रम बत्रा को श्रीनगर-लेह मार्ग के बेहद करीब स्थिति 5140 प्वाइंट को दुश्मन सेना से मुक्त कराकर भारतीय ध्वज फहराने की जिम्मेदारी दी गई.
कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने अद्भुत युद्ध कौशल और बहादुरी का परिचय देते हुए 20 जून 1999 की सुबह करीब 3.30 बजे इस प्वाइंट पर कब्जा जमा लिया था. इस सफलता के बाद सैन्य अधिकारीयों द्वारा उन्हें 4875 प्वाइंट पर भारतीय ध्वज फहराने का लक्ष्य दिया गया. लेकिन 7 जुलाई 1999 के दिन इस मिशन पर उनके एक साथी लेफ्टिनेंट नवीन के पैर में गोली लग गई, कैप्टन बत्रा अपने साथी को मुसिबत में देख उनकी ओर दौड़ पड़े, वे साथी नवीन को खिंच कर ला ही रहे थे कि दुश्मनों की एक गोली उनके सीने में आ लगी, उन्होंने 'जय माता दी' कहते हुए प्राण त्याग दिए और वीरगति को प्राप्त हुए. उनके अदम्य साहस के कारण उन्हें 15 अगस्त 1999 को परमवीर चक्र प्रदान किया गया.
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