हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष रूप में जन्में भगवान विष्णु के द्वारपाल

हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष रूप में जन्में भगवान विष्णु के द्वारपाल
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डीडी भारती पर प्रसारित हो रहे विष्णु पुराण (Vishnu Puran) में अब तक आपने देखा भगवान विष्णु ने छल से देवताओं को अमृत पान करवाया। इस बीच स्वरभानु नामक एक असुर ने धोखे से अमृत की कुछ बूंदें पी लीं। वहीं सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया और भगवान विष्णु को बता दिया।वहीं  इससे पहले की अमृत उसके गले से नीचे उतरता, विष्णु जी ने उसका गला सुदर्शन चक्र से काट दिया। इसके साथ ही  तब तक उसका सिर अमर हो चुका था। इसी कारण सिर राहु और धड़ केतु ग्रह बना और सूर्य- चंद्रमा से अभी भी द्वेष रखता है।

इसके अलावा आज के एपिसोड में आपने देखा कुछ ऋषि भगवान विष्णु के दर्शनार्थ उनसे मिलने विष्णु लोक आते हैं, जय और विजय नाम के दो द्वारपाल उन्हें भगवान विष्णु से मिलने नहीं देते जिससे क्रोधित होकर वो दोनों को राक्षस बन जाने का श्राप दे देते हैं। इस तरह दोनों को दंड दिया जाता है। इसके अलावा भगवान विष्णु उन ऋषियों से स्वयं माफी मांगते हैं। वहीं इस पर जय और विजय दोनों भगवान विष्णु से इस श्राप का समाधान जानने की कोशिश करते हैं, इसपर ऋषिगण बताते हैं, हमारे श्राप के कारण इन दोनों को तीन बार राक्षस योनि में जन्म लेना होगा और स्वंय भगवान विष्णु के हाथों इनकी मृत्यु होगी। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें की सनकादिक ऋषि बताते हैं इनका पहला जन्म हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष के रूप में हुआ। भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का तथा नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का वध कर दिया। यह भगवान विष्णु का तीसरा अवतार माना जाता है। वहीं दूसरे जन्म में जय-विजय ने रावण व कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया। वहीं इनका वध करने के लिए भगवान विष्णु को राम अवतार लेना पड़ा। तीसरे जन्म में जय-विजय शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्मे। इस जन्म में भगवान श्रीकृष्ण ने इनका वध किया। इसके उपरांत दोनों को मुक्ति मिलती है। वहीं जय विजय को ये दंड उनके अभिमान के कारणवश दिया गया।

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