इस्लामाबाद: पाकिस्तान की इस्लामी संस्था *काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी (CII)* ने हाल ही में वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPN) के इस्तेमाल को लेकर विवादित बयान दिया है। CII के प्रमुख डॉ. रघीब नईमी ने कहा कि VPN का उपयोग इस्लामी कानूनों के खिलाफ है और इसे "हराम" माना जा सकता है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान सरकार ने कई वेबसाइटों पर प्रतिबंध लगा रखा है, और लोग इन वेबसाइटों तक पहुंचने के लिए VPN का इस्तेमाल कर रहे हैं।
डॉ. नईमी ने स्पष्ट किया कि VPN अपने आप में हराम नहीं है, लेकिन अगर इसका उपयोग इस्लाम, पैगंबर मोहम्मद, या सरकार की आलोचना के लिए किया जाता है, तो इसे शरिया के खिलाफ माना जाएगा। उनके इस बयान के बाद विवाद शुरू हो गया, जिसमें विभिन्न धार्मिक विद्वानों और जनता ने अपनी प्रतिक्रिया दी। VPN के मुद्दे पर खुद इस्लामी विद्वानों के बीच मतभेद देखने को मिला। मशहूर मौलाना तारिक जमील ने नईमी के बयान का मजाक उड़ाते हुए कहा कि अगर VPN का गलत इस्तेमाल गैर-इस्लामी है, तो मोबाइल फोन को भी हराम घोषित कर देना चाहिए। उनका तर्क था कि हर टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि टेक्नोलॉजी को ही गैर-इस्लामी घोषित कर दिया जाए।
पाकिस्तान सरकार ने VPN उपयोगकर्ताओं पर भी शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। अब VPN का इस्तेमाल करने वाले लोगों से इसे सरकार के पास रजिस्टर कराने के लिए कहा जा रहा है। सरकार का तर्क है कि प्रतिबंधित वेबसाइटों तक पहुंच को सीमित करने और साइबर अपराध रोकने के लिए यह कदम जरूरी है। पाकिस्तान में हाल के वर्षों में कई वेबसाइटों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को ब्लॉक किया गया है। इनमें वे साइटें शामिल हैं, जिन्हें सरकार "राष्ट्रीय सुरक्षा" और "सांस्कृतिक मूल्यों" के खिलाफ मानती है। प्रतिबंधित साइटों तक पहुंचने के लिए VPN का व्यापक इस्तेमाल हो रहा है, जो सरकार के लिए चुनौती बन चुका है। यह विवाद न केवल धार्मिक और कानूनी स्तर पर चर्चा का विषय बना है, बल्कि टेक्नोलॉजी और स्वतंत्रता के अधिकारों को लेकर भी सवाल खड़े कर रहा है।
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