नई दिल्ली: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के सामने अब ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि उसे अपनी ही संपत्तियों को बचाने के लिए सांसदों की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। एएसआई, जो देश के ऐतिहासिक धरोहरों और संरक्षित स्मारकों की देखरेख करता है, अब इस स्थिति में है कि उसे वक्फ बोर्ड द्वारा अपनी ही जमीनों पर दावा किए जाने से हो रही परेशानियों को लेकर फ़रियाद करनी पड़ रही है। हाल ही में एक आंतरिक सर्वेक्षण में पाया गया कि एएसआई के संरक्षण में मौजूद 250 स्मारक वक्फ संपत्तियों के रूप में सूचीबद्ध कर दिए गए हैं।
यह मामला तब और गंभीर हो गया जब वक्फ बोर्ड ने इन संरक्षित स्मारकों को अपनी संपत्ति घोषित कर दिया। इन दावों के कारण न केवल एएसआई के अधिकारों को चुनौती मिली है, बल्कि प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम (एएमएएसआर), 1958 के तहत उसके कर्तव्यों पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है। वक्फ बोर्ड को यह अधिकार वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत मिला है, जो उसे किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने की शक्ति देता है। सवाल यह है कि वक्फ बोर्ड को इतनी ताकत किसने दी और क्यों, कि वह सरकारी विभागों की संपत्तियों पर कब्जा कर सके और सरकार या अदालतें इस पर कोई ठोस कदम न उठा सकें।
एएसआई ने जेपीसी के समक्ष प्रस्तुतिकरण देते हुए बताया कि वक्फ बोर्ड के इन दावों के कारण उसके संरक्षण प्रयासों में बाधा आ रही है। उसने यह भी बताया कि कई स्मारकों पर वक्फ बोर्ड ने स्वतंत्र रूप से दावा किया है, जिनमें दिल्ली के ऐतिहासिक स्थल जैसे फिरोजशाह कोटला की जामा मस्जिद, आरके पुरम की छोटी गुमटी मकबरा, और हौज खास की मस्जिद और ईदगाह शामिल हैं।
यह स्थिति केवल एएसआई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। वक्फ बोर्ड को इतनी असीमित ताकत कैसे और क्यों दी गई कि वह सरकारी जमीनों पर कब्जा कर सके? यह भी सवाल उठता है कि क्या सच्चर कमेटी की रिपोर्ट, जिसने "एएसआई के अनधिकृत कब्जे वाली वक्फ संपत्तियों" का जिक्र किया था, ने इस समस्या को बढ़ाने में भूमिका निभाई।
अभी तक की जानकारी के मुताबिक, एएसआई ने पहले अनुमान लगाया था कि वक्फ बोर्ड के दावों के तहत आने वाले संरक्षित स्मारकों की संख्या 120 है, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 250 हो गई है। इन मामलों में वक्फ बोर्ड के दावे और एएसआई के अधिकारों के बीच संघर्ष ने सरकारी विभागों और एजेंसियों की नीतियों और कानूनों की कमजोरियों को उजागर किया है।
अब सवाल यह है कि क्या सरकार इस विवाद को हल करने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगी, या एएसआई को इसी तरह अपनी संपत्तियों को बचाने के लिए समितियों के चक्कर लगाने होंगे? अगर वक्फ बोर्ड के अधिकार इतने ताकतवर हैं कि वे सरकारी विभागों की संपत्तियों को भी अपनी घोषित कर सकते हैं, तो क्या यह कानून में बदलाव की मांग नहीं करता? और सबसे महत्वपूर्ण बात, क्या वक्फ बोर्ड को इस हद तक ताकतवर बनाना उचित था, कि वह देश की ऐतिहासिक धरोहरों पर कब्जा जमा सके? ये काम किस कारण से किया गया था ?
इसके बदले देश को क्या मिला? क्या ये देशहित में और संविधान सम्मत था? क्योंकि संविधान बनने के साथ ही और लौह पुरुष द्वारा तमाम रियासतें एकजुट करने के बाद ही, पूरा भारत सरकार के अधीन हो गया था, राजा-रजवाड़ों की भी कोई पुश्तैनी संपत्ति नहीं रह गई थी, फिर वक्फ की 9 लाख एकड़ की संपत्ति कहाँ से आई, जो हर साल सर्वे के बाद बढ़ती जा रही है? इसके जरिए कहीं भारत के इस्लामीकरण की साजिश तो नहीं थी? ये गलती इतनी बड़ी है कि इस पर १० सवाल खड़े हो सकते हैं, अब देश की जनता को ये सोचना है कि ये सब किसलिए किया गया और किसने किया?