लखनऊ: इलाहाबाद उच्च न्यायालय परिसर में वक्फ मस्जिद को हटाने का मामला अब सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया है। शीर्ष अदालत में शुक्रवार (17 फ़रवरी) को इस मामले की सुनवाई टालते हुए अगली सुनवाई की तारीख 13 मार्च मुक़र्रर की है। सुनवाई की तारीख तय करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा है कि इस मामले की सुनवाई इस बार किसी भी आधार पर स्थगित नहीं की जाएगी। दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय, इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 'वक्फ मस्जिद हाईकोर्ट' नाम की एक मस्जिद को उसके परिसर से हटाने के 2018 के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है।
बता दें कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने 2018 के आदेश में कहा था कि अदालत परिसर के किसी भी हिस्से को किसी भी धार्मिक गतिविधि के लिए इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जाएगी। सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय को बताया गया कि “यह अतिक्रमण का मामला है। पूर्व में प्रतिवादी शीर्ष अदालत में मुकदमा हार चुके है। 3 पट्टेदारों को कब्जा सौंपने का निर्देश दिया गया था। इसके बाद मस्जिद को बचाने के लिए एक वक्फ बनाया गया और इसे पंजीकृत करवाया गया। इन लोगों ने दोबारा शीर्ष अदालत का रुख किया है। वहां कोई मस्जिद थी ही नहीं।'
उच्च न्यायालय के वकील ने कहा है कि, ‘नहीं, एक टीन का शेड था। बाद में इसका पंजीकरण कराया गया। मस्जिद की ओर से पेश वकील ने कहा कि, मस्जिद सन 1981 से है। वहीं, उच्च न्यायालय के वकील का कहना था कि, पट्टा ’96 में पंजीकृत और ’98 में नवीनीकृत किया गया, मस्जिद का कोई जिक्र नहीं। जब पहली बार जब केस चला, तब मस्जिद का कोई जिक्र ही नहीं किया गया था।’
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लिए पेश वकील ने कहा कि, फैसला तो हमारे पक्ष में आया था। सुप्रीम कोर्ट के आखिरी फैसले के बाद एक दशक से प्रतीक्षा कर रहे हैं। एडिशनल एडवोकेट जनरल ने कहा हमें इस इमारत की सख्त आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति शाह ने चुटकी लेते हुए कहा वैसे भी अच्छा काम संवत जलने के बाद यानि होली के बाद ही होता है।
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