कोच्ची: केरल हाई कोर्ट ने वक्फ के मामलों में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वक्फ न्यायाधिकरण के होने के बावजूद, सिविल कोर्ट को पुराने वक्फ विवादों से संबंधित आदेशों को लागू करने का अधिकार है। यह फैसला विशेष रूप से उस स्थिति पर आधारित था जब वक्फ अधिनियम के तहत ट्रिब्यूनल की स्थापना से पहले शुरू किए गए मामलों का निष्पादन सिविल कोर्ट द्वारा किया जाना था।
हाई कोर्ट ने कहा कि वक्फ अधिनियम में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, जिससे यह साबित होता हो कि वक्फ न्यायाधिकरण ही वक्फ विवादों से संबंधित डिक्री को निष्पादित करने का एकमात्र मंच है। कोर्ट ने न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ के हवाले से कहा कि वक्फ ट्रिब्यूनल का गठन होने के बाद भी सिविल कोर्ट को वक्फ विवादों से संबंधित डिक्री को निष्पादित करने का अधिकार प्राप्त है।
यह मामला एक मस्जिद के नियंत्रण को लेकर था, जिस पर वक्फ और उसके संबंधित प्राधिकरण के बीच विवाद था। याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उनके पूर्वजों ने मस्जिद बनाई थी, और इसके प्रशासन के लिए गैरकानूनी तरीके से समिति बनाई गई थी। मामले की शुरुआत 1996 में हुई थी, और 2000 में सिविल कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला दिया। बाद में, जब वक्फ ट्रिब्यूनल का गठन हुआ, तो विवाद का निष्पादन ट्रिब्यूनल के दायरे में आने का सवाल उठ खड़ा हुआ। ट्रिब्यूनल ने सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी थी, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे गलत माना और सिविल कोर्ट के अधिकार को बरकरार रखा।
वक्फ अधिनियम की धारा 85 में वक्फ संपत्तियों से जुड़े मामलों में सिविल कोर्ट को कानूनी कार्रवाई से रोकने की बात की गई थी, लेकिन केरल हाई कोर्ट ने इसे संविधान और न्याय पाने के अधिकार के खिलाफ माना। कोर्ट ने कहा कि संविधान के तहत हर नागरिक को न्याय पाने का अधिकार है, और न्याय करने का अधिकार केवल न्यायालयों को है, वक्फ ट्रिब्यूनल को नहीं।
इस निर्णय ने कांग्रेस सरकार के कानून की आलोचना की, जिसमें वक्फ ट्रिब्यूनल को यह अधिकार दिया गया था कि वह वक्फ विवादों में अदालतों से ऊपर हो। कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह संविधान के खिलाफ है, और न्यायालय का अधिकार सर्वोपरि होता है। इसके साथ ही, कोर्ट ने वक्फ ट्रिब्यूनल के गठन से पहले के मामलों को सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में ही रहने की बात कही और निर्देश दिया कि सिविल कोर्ट तीन महीने के भीतर डिक्री को निष्पादित करे।
इस निर्णय से यह स्पष्ट हुआ है कि वक्फ ट्रिब्यूनल का गठन अदालतों के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करने के लिए नहीं है, और न्यायालयों के पास हमेशा न्याय देने का अधिकार रहेगा।
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