भोपाल: मध्य प्रदेश के दो वरिष्ठ IAS अफसरों के खिलाफ वारंट जारी होने की खबर ने प्रशासनिक तंत्र और न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिन अधिकारियों पर यह कार्रवाई हुई है, वे राज्य के उच्च शिक्षा विभाग में पदस्थ अपर मुख्य सचिव (ACS) अनुपम राजन और आयुक्त (कमिश्नर) निशांत वरवड़े हैं।
मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग ने दोनों अधिकारियों के खिलाफ 5-5 हजार रुपए के जमानती वारंट जारी किए हैं। इन्हें 22 जनवरी 2025 को आयोग के सामने पेश होने का आदेश दिया गया है। इनके अलावा, लोक निर्माण विभाग (PWD) के मुख्य इंजीनियर संजय मस्के पर भी वारंट जारी हुआ है। यह कार्रवाई एक प्रोफेसर और एक महिला स्पोर्ट्स अधिकारी की शिकायतों को लेकर की गई है। मोतीलाल विज्ञान कॉलेज, भोपाल के प्रोफेसर कैलाश त्यागी ने अपनी अर्जित अवकाश (LTC) की राशि रोके जाने की शिकायत मानवाधिकार आयोग में की थी। उन्होंने प्राचार्य पर कार्रवाई की मांग की थी और अपनी राशि ब्याज सहित लौटाने का अनुरोध किया था।
आयोग ने इस मामले में अनुपम राजन और निशांत वरवड़े से जवाब मांगा था। बार-बार रिमाइंडर भेजने के बावजूद दोनों अधिकारियों ने कोई रिपोर्ट जमा नहीं की। आखिरकार, आयोग ने इन पर जमानती वारंट जारी कर दिया। निशांत वरवड़े के खिलाफ एक महिला स्पोर्ट्स ऑफिसर के मामले में भी वारंट जारी हुआ है। महिला अधिकारी ने अपने कॉलेज के प्राचार्य पर जातिसूचक टिप्पणी का आरोप लगाया था। इस मामले में भी वरवड़े ने जांच रिपोर्ट समय पर पेश नहीं की।
इसके अलावा, एक अन्य मामले में बावड़िया कलां ओवरब्रिज की सड़क में खराबी पर पीडब्ल्यूडी के मुख्य इंजीनियर संजय मस्के को रिपोर्ट देने के निर्देश थे। मस्के की लापरवाही के चलते उनके खिलाफ भी वारंट जारी किया गया है। जब IAS जैसे प्रतिष्ठित और जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारी इस तरह की लापरवाही करते हैं, तो यह न केवल प्रशासनिक तंत्र की छवि को धूमिल करता है बल्कि आम जनता के विश्वास को भी हिलाता है। यदि इन अफसरों पर ही जवाबदेही सुनिश्चित नहीं हो सकती, तो जनता अपनी सुरक्षा और न्याय के लिए किस पर भरोसा करेगी?
यह मामला एक बड़ा सवाल खड़ा करता है: जब कानून का पालन कराने वाले अधिकारी ही कानून का सम्मान नहीं करते, तो प्रशासनिक तंत्र की पारदर्शिता और ईमानदारी कैसे सुनिश्चित होगी? जनता यह सोचने पर मजबूर है कि अगर उच्च पदों पर बैठे लोग खुद को कानून से ऊपर मानने लगें, तो फिर आम नागरिकों की सुरक्षा और अधिकारों की गारंटी कौन देगा?