नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ वर्तमान में जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एसके कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ के समक्ष सुनवाई का आज 7वां दिन था। याचिकाकर्ताओं की तरफ से कांग्रेस के पूर्व नेता और पेशे से वकील कपिल सिब्बल जिरह कर रहे हैं और सरकार के फैसले को असंवैधानिक बताकर 370 वापस लागू करवाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। उनके साथ वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे भी 370 निरस्त करने के फैसले के खिलाफ जिरह कर रहे हैं।
CJI चंद्रचूड़ ने 17 अगस्त को इस मामले में कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि अदालत केवल तभी जांच करेगी, जब संविधान का उल्लंघन हुआ हो और सरकार के फैसले के आधार का पुनर्मूल्यांकन नहीं किया जाएगा। उन्होंने ये टिप्पणियां तब कीं जब याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने तर्क दिया कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा छीना नहीं जा सकता। दवे ने कोर्ट में कहा कि, 'आज के सदन के पास ऐसा करने का कोई नैतिक या संवैधानिक अधिकार नहीं है, क्योंकि उसके पास बहुमत है। जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए यह संविधान की अनिवार्य विशेषता थी। 5 अगस्त को राष्ट्रपति एक उद्घोषणा जारी करते हैं। फिर इसे राज्यसभा में भेजा जाता है। राज्यसभा उसी दिन सिफ़ारिश भेजती है। फिर राज्यसभा उसी दिन पुनर्गठन विधेयक को मंजूरी दे देती है, अगले दिन लोकसभा में इसे मंजूरी दे दी जाती है।
वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि 'इन संवैधानिक सभा की बहसों में कई साल लग गए। ये वे पुरुष और महिलाएं हैं जो इस देश में पैदा हुए लोगों में सबसे प्रतिभाशाली थे। हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं। अगर हम संविधान की व्याख्या वैसे करेंगे जैसे आज की सरकार हमसे कहती है, तो हम उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय करेंगे।' इस पर CJI ने जवाब देते हुए कहा कि कोर्ट सरकार के फैसले के आधार का दोबारा आकलन नहीं करेगा। CJI चंद्रचूड़ ने पुछा कि, 'क्या आप अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सरकार की मंशा का आकलन करने के लिए न्यायिक समीक्षा चाहते हैं? न्यायिक समीक्षा संवैधानिक उल्लंघन के लिए होगी, इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि ऐसा उल्लंघन होता है तो यह अदालत हस्तक्षेप करेगी, लेकिन क्या आप हमसे अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले के अंतर्निहित विवेक की न्यायिक समीक्षा करने के लिए कह रहे हैं?'
इसके बाद भी दवे ने बहस जारी रखी और कहा कि इतिहास, विशेषकर संवैधानिक इतिहास को दोबारा नहीं लिखा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अनुच्छेद 370(3) के तहत अनुच्छेद 370 को हटाने की कोई शक्ति नहीं है। उन्होंने कहा कि संविधान को निरस्त करने की कवायद पूरी तरह से संविधान के साथ धोखाधड़ी है। दवे के मुताबिक, भाजपा ने अपने घोषणापत्र में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का वादा किया था और अदालत ने फैसला सुनाया है कि घोषणापत्र संवैधानिक योजना और भावना के खिलाफ नहीं हो सकते।
दवे ने कहा कि, 'अब क्योंकि आपके (सरकार के) पास संसद में बहुमत है, आपने ऐसा किया है, और यह सब इसलिए है क्योंकि आपने लोगों से कहा था कि वे आपको वोट दें। यह रंगीन विचारों के लिए प्रयोग की गई शक्ति को दर्शाता है। राष्ट्रपति कोई रबर स्टांप नहीं है, बहुमत बोलता नहीं, वह कोई घटक शक्ति नहीं है।' अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली 20 से अधिक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे और शेखर नफाड़े ने गुरुवार, 16 अगस्त को याचिकाकर्ताओं की ओर से अपनी दलीलें पेश कीं। अब वकील दिनेश द्विवेदी अपनी दलीलें पेश कर रहे हैं।
इस मामले में सुनवाई 2 अगस्त को शुरू हुई थी और आज सुनवाई का सातवां दिन है। संविधान पीठ ने तीन अगस्त को पूछा था कि क्या जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को संविधान के मूल ढांचे के बराबर माना जा रहा है ? हालाँकि, CJI ने कहा कि न्यायालय केवल यह जाँच करेगा कि क्या संविधान का उल्लंघन हुआ है और पूर्व राज्य जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के सरकार के निर्णय के आधार का पुनर्मूल्यांकन नहीं करेगा।
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