कोलकाता: दुर्गापूजा में अब अधिक समय नहीं बचा है, इसलिए उसकी हलचल शुरू हो गई है। कोलकाता के ‘कलाकार’ सनातन डिंडा ने अपनी एक पेंटिंग में माँ दुर्गा को हिजाब में दिखाते हुए लिखा कि; 'माँ आसछेन' अर्थात माँ आ रही हैं। बांगला में इस वाक्य का उपयोग दुर्गा पूजा से पहले किया जाता है, यह बताने के लिए कि माँ दुर्गा अपने परिवार के साथ आ रहीं हैं।
"Maa Durga in hijab"
— Keya Ghosh (@keyakahe) September 14, 2021
By artist Sanatan Dinda. He knows he can get away with it because many intellectual Bengalis are going gaga over it.@Rajput_Ramesh @MODIfiedVikas kindly look into it. @HinduITCell
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कलाकार, बुद्धिजीवी और उनके समर्थक इस पेंटिंग की कला का हवाला देकर भले ही तारीफ करें, किन्तु वास्तविकता यही है कि आम हिंदू के लिए यह उसकी भक्ति, आस्था और सहिष्णुता का मजाक है और वह इसे ऐसे ही देखने के लिए विवश है, क्योंकि अगर वह विरोध प्रकट करता है, तो सांप्रदायिक कहा जा सकता है। बुद्धिजीवी और कलाकार अपने लिए भगवान से ऐसी आँखें माँग लाए हैं, जो आम हिंदुओं की आँखों से अलग हैं और यही वजह है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी और हिंदुओं की सहिष्णुता की सीमाएँ आए दिन एक-दूसरे को आजमाती रहती हैं। ऐसे सैकड़ों उदाहारण हैं, जब फिल्मकार, कलाकार, कहानीकार, कवि या अन्य बुद्धिजीवी, हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाली सस्ती से सस्ती रचनात्मकता का महिमामंडन करने से भी परहेज़ नहीं करते।
एम एफ हुसैन की पेंटिंग्स हों, या फिर जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में महिषासुर की तथाकथित महानता का बखान, हमारे बुद्धिजीवी वह सबकुछ सेलिब्रेट करते आए हैं, जिनमें हिंदुओं को ठेस पहुँचाने की संभावना दिखती है। ऐसे में आश्चर्य न होगा, अगर इस पेंटिंग और उसकी महिमामंडन का विरोध करने वालों को फ़ौरन असहिष्णु और सांप्रदायिक घोषित कर दिया जाए। वहीं, ममता राज में जब विरोध करने वालों या फिर यूँ कहें की दीदी का समर्थन न करने वालों को बंगाल छोड़कर पलायन करना पड़ रहा है, तो आम लोगों की क्या ही बिसात, जो इस मुद्दे पर आवाज़ उठा लें।
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