शादी का दिन
हर लड़की के जीवन में एक वो दिन जरूर आता है जब उसे अपने माता-पिता के घर को छोड़कर अपने पति के साथ नई जिन्दगी की शुरुआत करनी होती है। वैसे तो पुरुषों के लिए भी विवाह का अर्थ उतना ही गंभीर होता है जितना एक महिला के लिए, दोनों का ही जीवन पहले से अलग होने वाला होता है।
जिम्मेदारी
लेकिन फर्क बस इतना होता है कि जहां शादी के बाद लड़कियों को अपने कम्फर्ट जोन, यानि अपने पिता के घर को छोड़कर ससुराल में आना होता है वहीं लड़का रहता तो उसी घर में, अपने माता-पिता के साथ है, बस उसका जीवन किसी से हमेशा के लिए जुड़ जाता है, वो लड़की उसकी जिम्मेदारी बन जाती है।
कितना सफल हो पाएगा रिश्ता
इस रिश्ते की सफलता और असफलता फिर इसी बात पर निर्भर करती है कि दोनों अपनी जिम्मेदारियों को किस तरह उठाते हैं।
विवाह का महत्व
भारत में विवाह का महत्व किसी भी स्थिति में दरकिनार नहीं किया जा सकता। इसके जरिए ना सिर्फ दो लोग आजीवन के लिए एक-दूसरे के साथ एक डोर में बंध जाते हैं बल्कि उनके साथ-साथ उन दोनों के परिवार वाले भी उनकी जिन्दगी के अटूट हिस्से बन जाते हैं।
क्या आते हैं विचार
शादी से पहले लड़का और लड़की दोनों ही बहुत संजीदा हालातों का सामना करते हैं। जिन्दगी भर का निर्णय है, बिना सोचे-समझे लिया जाना भी नहीं चाहिए। यहां तक कि शादी के दिन भी उनके मन में कई तरह के सवाल और विचार चल रहे होते हैं, खासकर महिलाओं का दिमाग तो ना जाने क्या-क्या सोचने लगता है।
क्या वाकई मुझे शादी कर लेनी चाहिए
शादी के दिन महिलओं के साथ कुछ ऐसा ही होता है। उनके मस्तिष्क में बस यही चल रहा होता है क्या मैं किसी से हमेशा के लिए जुड़ने, हर परिस्थिति को संभालने के लिए तैयार हूं? क्या वाकई मुझे शादी कर लेनी चाहिए?
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