लखनऊ: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की कल (20 सितंबर) को संदिग्ध हालातों में मौत हो गई थी तथा उनका शव यूपी के प्रयागराज स्थित बाघंबरी मठ के कमरे से फांसी के फंदे से लटकता पाया गया था। शव के पास प्राप्त हुए सुसाइड नोट में शिष्य आनंद गिरि सहित कई व्यक्तियों के नाम थे। वही अब कही लोगों के मन में ये सवाल भी आ रहा है कि साधुओं का अखाड़ा क्या होता है, तो आइये हम आपको बताते है इसका महत्व और क्या होता है साधुओं का अखाड़ा...
शैव, वैष्णव तथा उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं। पूर्व में आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा मतलब साधुओं का जत्था बोला जाता था। पहले अखाड़ा शब्द का चलन नहीं था। साधुओं के जत्थे में पीर तथा तद्वीर होते थे। अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से आरम्भ हुआ। अखाड़ा साधुओं का वह दल है जो शस्त्र विद्या में भी पारंगत रहता है। वही कुछ विद्वानों का कहना है कि अलख शब्द से ही अखाड़ा शब्द बना है। कुछ कहते हैं कि अक्खड़ से या आश्रम से। वही अखाड़ा, यूं तो कुश्ती से जुड़ा हुआ शब्द है, लेकिन जहां भी दांव-पेंच की गुंजाइश होती है, वहां इसका इस्तेमाल भी होता है। प्राचीनकाल में भी राज्य की तरफ से एक तय स्थान पर जुआ खिलाने का प्रबंध किया जाता था, जिसे अक्षवाट बोलते थे।
वही अक्षवाट, बना है दो शब्दों अक्ष तथा वाटः से मिलकर। अक्ष के कई मतलब हैं, जिनमें एक मतलब है चौसर या चौपड़, अथवा उसके पासे। वाट का मतलब होता है घिरा हुआ स्थान। यह बना है संस्कृत धातु वट् से जिसके तहत घेरना, गोलाकार करना आदि भाव आते हैं। इससे ही बना है उद्यान के अर्थ में वाटिका जैसा शब्द। चौपड़ अथवा चौरस जगह के लिए बने वाड़ा जैसे शब्द के पीछे भी यही वट् धातु का ही योगदान रहा है। इसी प्रकार वाट का एक रूप बाड़ा भी हुआ, जिसका मतलब भी घिरा हुआ स्थान है। अप्रभंष के चलते कहीं-कहीं इसे बागड़ भी बोला जाता है। इस प्रकार देखा जाए तो, अक्षवाटः का मतलब हुआ, ‘द्यूतगृह अर्थात जुआघर।’ अखाड़ा शब्द संभवत: यूं बना होगा- अक्षवाटः अक्खाडअ, अक्खाडा, अखाड़ा।
वही इसी प्रकार अखाड़े में वे सब शारीरिक क्रियाएं भी आ गईं, जिन्हें क्रीड़ा की संज्ञा दी जा सकती थी तथा जिन पर दांव लगाया जा सकता था। जाहिर है प्रभावशाली व्यक्तियों के बीच शान तथा मनोरंजन की लड़ाई के लिए कुश्ती का प्रचलन था, इसलिए आहिस्ता-आहिस्ता कुश्ती का बाड़ा अखाड़ा कहलाने लगा तथा जुआघर को अखाड़ा कहने का चलन समाप्त हो गया। अब तो व्यायामशाला को भी अखाड़ा बोलते हैं तथा साधु-संन्यासियों के मठ या रुकने कि जगह को भी अखाड़ा बोला जाता है। हलांकि आधुनिक व्यायामशाला का निर्माण स्वामी समर्थ रामदान की देन है, मगर संतों के अखाड़ों का निर्माण पुराने वक़्त से ही चला आ रहा है। व्यायाम शाला में पहलवान कुश्ती का अभ्यास करते हैं। दंड, बैठक आदि लगाकर शारीरिक श्रम करते हैं वहीं साधुओं के अखाड़ों में भी शारीरिक श्रम के साथ-साथ अस्त्र तथा शास्त्र का अभ्यास करते हैं।
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