नई दिल्ली: गजवा-ए-हिन्द क्या है इसके बारे में मुस्लिम स्कॉलर वकील रिजवान अहमद ने एक डिबेट शो में विस्तार से जवाब दिया है। उन्होंने बताया है कि हिन्दुओं की तुलना में मुस्लिमों की ग्रोथ काफी तेजी से हो रही है। धर्मान्तरण पर रिज़वान अहमद ने कहा कि हिन्दू धर्म में, यानी सनातन धर्म में कभी ऐसा कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं था कि दूसरे व्यक्ति का धर्मांतरण करो। सबसे पहले ये ईसाइयत में था और उससे भी पहले ये कांसेप्ट बुद्धिज्म में आया कि दूसरे का धर्मांतरण करो।
जब एंकर ने उनसे सवाल किया कि क्या इस्लाम का धर्मांतरण ये सोच कर किया जाता है कि धरती पर सिर्फ इस्लाम धर्म ही होना चाहिए तो उन्होंने बताया कि बिलकुल ये हमारा (मुस्लिम का) मानना होता है कि यदि हम घड़ी से देखें कि 24 घंटे में कहीं न कहीं हर वक़्त अजान होती रहती है, यहां मैं आपके साथ बैठा हूं, किन्तु विश्व के किसी न किसी कोने में अजान हो रही होगी। मुसलमान इस बात को लेकर बहुत गर्व महसूस करते हैं कि उनकी अजान 24X7 चलती रहती है। इस्लाम धर्म में एक बात तो तय है कि वो धर्मांतरण और इस्लाम को ही सबसे बेहतर मानता है, इसके लिए वो आपको कैसे तैयार करता है, वो जरिया अलग हो सकता है, फिर चाहे वो हिंसा का रास्ता हो, चाहे वो आपको धमका कर करे, चाहे वो आपको लालच देकर कहे या फिर किसी और तरीके से करवाए एजेंडा एक ही है और वो ये है कि 'इस्लाम सबसे बेहतर है।'
रिज़वान अहमद ने आगे कहा कि यदि आप किसी आम मुस्लिम को इस्लाम के बारे में बताओगे, तो वो कभी इसका विरोध नहीं करेगा। अधिक से अधिक वो चुप रहेगा या समर्थन करेगा, मगर विरोध तो कभी नहीं करेगा। रिजवान अहमद ने आगे बताया कि समय के साथ गजवा-ए-हिन्द की परिभाषा बदली है, ये कभी तलवार के साथ हुआ करता था, तो कभी लालच से हुआ, कभी सूफिज्म के पैगाम के कारण हुआ, मगर आज के दौर में ये तरीका अलग होगा, इसको आप यूरोप, लंदन, ब्रिटेन और भारत में देख सकते हैं। अब ये लोकतांत्रिक तरीके से हो चुका है, जिसके अनुसार हम इस्लाम फैलाएंगे और आपके संविधान के दायरे में रहकर फैलाएंगे। इसका ये अर्थ नहीं है कि इस्लामिक मुल्क होगा। आपने देखा होगा कि जब 1947 में भारत पाकिस्तान का विभाजन हुआ था, तब मुस्लिमों की जनसंख्या कोई 55 फीसद तो नहीं थी, लगभग 24 फीसदी रही होगी, लेकिन फिर भी उन्होंने बंटवारा करवा लिया, ये इसी तरह होता है।
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