धारा 497: इन देशों में अब भी अपराध है 'व्यभिचार', मृत्युदंड तक मिल सकती है सजा

धारा 497: इन देशों में अब भी अपराध है 'व्यभिचार', मृत्युदंड तक मिल सकती है सजा
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नई दिल्ली: भारत के शीर्ष न्यायलय के फैसले के अनुसार विवाह के इतर यौन संबंध अब अपराध नहीं है लेकिन तलाक के लिए वजह हो सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को रद्द करते हुए कहा है कि एक महिला की गरिमा सबसे ऊपर है और संविधान महिला पुरुष दोनों को सामान अधिकार देता है. 

क्या है धारा 497 ?

धारा 497 के तहत अगर कोई आदमी किसी दूसरे पुरुष की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाता है तो उस महिला के पति की शिकायत पर संबंध बनाने वाले मर्द पर क़ानूनी कार्यवाही की जा सकती है. अगर इसमें महिला की सहमति नहीं है तो ये रेप की श्रेणी में जाएगा और अगर महिला की सहमति है तो भी उसके पति की शिकायत पर संबंध बनाने वाले आदमी पर व्यभिचार करने के आरोप के तहत कार्यवाही की जाएगी. इसमें अब तक महिला को ये शिकायत करने का अधिकार नहीं था कि उसके पति ने किसी अन्य महिला के साथ संबंध बनाए हैं. लेकिन अब अदालत ने इस धारा को ख़ारिज कर दिया है. मतलब अब शादी के बाद किसी अन्य से संबंध बनाना व्यभिचार की श्रेणी में नहीं आएगा.

इन देशों में अब भी अपराध है व्यभिचार

भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में व्यभिचार, हुडुद अध्यादेश के तहत एक अपराध है, जिसे 1979 में पेश किया गया था. इस विवादस्पद कानून के तहत अगर कोई महिला बलात्कार की शिकायत करती है तो उसे 4 पुरुष चश्मदीद गवाहों को पेश करना होगा, वर्ना उस महिला के खिलाफ ही व्यभिचार का मामला दर्ज हो जाएगा.

ताइवान में भी व्यभिचार एक अपराध है जिसमे महिला पुरुष दोनों को एक साल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है. ताइवान में अगर कोई पति किसी अन्य महिला के साथ संबंध बनाते हुए पकड़ा जाता है तो वो अपनी पत्नी से माफ़ी मांगकर बच सकता है, लेकिन अगर महिला उन्हें माफ़ नहीं करती है तो पुरुष पर व्यभिचार के तहत मामला दर्ज हो जाएगा.

संयुक्त राज्य अमेरिका के 20 राज्यों में व्यभिचार अभी भी एक अपराध माना जाता है. लेकिन अमेरिका में इस अपराध को लेकर अदालत तक बहुत ही कम मामले जाते हैं, अधिकतर ये जुर्माने आदि में समाप्त हो जाते हैं.

सऊदी अरब और सोमालिया समेत इस्लामी कानून द्वारा शासित देश, सख्ती से "ज़िना" या "विवाह के बाहर व्यभिचार" को प्रतिबंधित करते हैं. दंडों में जुर्माना, कारावास और जघन्य मामलों में मृत्युदंड भी शामिल है. 

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