बैंगलोर: कर्नाटक में पेंशन स्कीम को लेकर सरकारी कर्मचारियों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। न्यू पेंशन स्कीम (NPS) के खिलाफ लामबंद कर्मचारी 7 फरवरी को सड़कों पर उतरने की तैयारी में हैं। उनका सीधा आरोप है कि सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) लागू करने का वादा किया था, लेकिन अब इस मुद्दे पर कांग्रेस सरकार बैकफुट पर नजर आ रही है। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पहले सरकारी कर्मचारियों से OPS को वापस लाने का वादा किया था। जनवरी 2023 में सरकार ने इस मुद्दे को कैबिनेट में लाने की बात कही थी।
इसके बजाय सरकार ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) का ऐलान कर दिया, जिसे कर्मचारी संघ ने सिरे से खारिज कर दिया। कर्मचारियों का कहना है कि UPS उनकी मांग का समाधान नहीं है और OPS ही एकमात्र विकल्प है। कर्नाटक राज्य सरकार एनपीएस कर्मचारी संघ ने साफ कर दिया है कि अगर कांग्रेस सरकार ने 2025-26 के बजट में OPS को लागू करने का आश्वासन नहीं दिया, तो वे बड़ा आंदोलन करेंगे। संघ का कहना है कि सरकार की ओर से एनपीएस को खत्म करने के लिए कमेटी का गठन सिर्फ समय खींचने की चाल है।
पेंशन विवाद कांग्रेस के लिए उलझन भरा हो गया है। लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में OPS का कोई जिक्र नहीं किया। पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने इसे घोषणापत्र में शामिल न करने पर सफाई देते हुए कहा कि एनपीएस की समीक्षा के लिए कमेटी बनाई गई है, इसलिए इसे हटाया नहीं गया। कांग्रेस का वादा और उसके बाद की स्थितियाँ यह दिखाती हैं कि पार्टी OPS को लेकर कोई स्पष्ट निर्णय लेने से बच रही है। हिमाचल प्रदेश समेत चार राज्यों में OPS लागू हो चुका है, लेकिन हरियाणा और तेलंगाना जैसे राज्यों में कांग्रेस को इस मुद्दे का चुनावी फायदा नहीं मिला।
ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत रिटायर्ड कर्मचारियों को उनकी अंतिम सैलरी का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में मिलता है। यह एक सुरक्षित और सुनिश्चित पेंशन योजना थी। इसके विपरीत, न्यू पेंशन स्कीम के तहत कर्मचारियों को अपनी बेसिक सैलरी का 10 प्रतिशत हिस्सा पेंशन के लिए देना होता है, जबकि सरकार का योगदान 14 प्रतिशत होता है। OPS को 2003 में बंद कर दिया गया था और 1 अप्रैल 2004 से NPS लागू कर दिया गया। कर्मचारियों का कहना है कि NPS के तहत उन्हें पेंशन की कोई निश्चित गारंटी नहीं मिलती।
कर्नाटक में 1 अप्रैल 2006 के बाद सरकारी नौकरी में आए करीब 2.78 लाख कर्मचारी NPS के दायरे में हैं। चुनावों से पहले कांग्रेस ने OPS बहाल करने का वादा किया था, लेकिन इसे लागू करना वित्तीय दृष्टि से चुनौतीपूर्ण हो सकता है। यूनिफाइड पेंशन स्कीम का प्रस्ताव इस मुद्दे को हल करने का प्रयास था, लेकिन कर्मचारी इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
सरकारी कर्मचारियों के आंदोलन की धमकी ने कांग्रेस सरकार को मुश्किल में डाल दिया है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनकी टीम पर OPS लागू करने के वादे को निभाने का दबाव बढ़ता जा रहा है। अगर सरकार इस मुद्दे पर जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाती, तो यह विवाद कांग्रेस की छवि और राजनीतिक भविष्य दोनों को प्रभावित कर सकता है। यह पेंशन विवाद सिर्फ आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि कांग्रेस के लिए एक राजनीतिक चुनौती बन चुका है। अब देखना यह है कि सरकार कर्मचारियों के आक्रोश को शांत करने के लिए क्या कदम उठाती है।