नई दिल्ली: दिल्ली में निर्वाचित सरकार की आखिर क्या आवश्यकता है, जब प्रशासन को लेकर तमाम फैसले केंद्र सरकार के ही आदेश पर लिए जाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक बेंच ने गुरुवार (12 जनवरी) को केंद्र बनाम दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों के बंटवारे को लेकर जारी सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली बेंच इन दिनों केंद्र और दिल्ली सरकार के विभागों के बीच अधिकारों के बंटवारे पर सुनवाई कर रही है। वहीं, अदालत की टिप्पणी पर जवाब देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार का नौकरशाहों पर प्रशासनिक नियंत्रण होता है। मगर, वे दिल्ली सरकार के संबंधित विभागों के लिए ही काम करते हैं और उन्हें ही रिपोर्टिंग करते हैं।
इस पर CJI चंदचूड़ ने कहा कि इस प्रकार की व्याख्या से अजीब स्थिति समझ में आती है। उन्होंने कहा कि मान लीजिए कि कोई अधिकारी अपना काम सही तरीके से नहीं कर रहा है। मगर, उसकी नियुक्ति, ट्रांसफर, पोस्टिंग आदि का अधिकार केंद्र सरकार के पास ही है, तो दिल्ली सरकार किस तरह उस अधिकारी पर ऐक्शन लेगी? क्या वह उस अधिकारी को शिफ्ट नहीं कर सकती? क्या वह उसकी जगह पर किसी दूसरे अधिकारी को नहीं ला सकती? इस पर केंद्र सरकार की तरफ से जवाब दिया गया कि ऐसे मामलों में ऐक्शन लेने की एक अलग प्रकिया है।
केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि ऐसा होने पर दिल्ली सरकार या उसका संबंधित मंत्रालय उपराज्यपाल (LG) को पत्र लिखता है। उस पत्र को LG की तरफ से केंद्र सरकार के संबंधित विभाग के पास भेजा जाता है, जो ऐक्शन लेता है। तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली में LG भी प्रशासक की भूमिका ही होते हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली में केंद्र सरकार के पास प्रशासनिक नियंत्रण होना अत्यंत आवश्यक है। इसका कारण यह है कि राजधानी आतंकवाद सहित कई महत्वपूर्ण मसलों को लेकर संवेदनशील जगह है। दिल्ली में प्रशासन, राष्ट्रीय चिंताओं के मद्देनज़र रखकर ही चलाया जाना चाहिए। इसके साथ ही पड़ोसी राज्यों से बेहतर तालमेल के लिए भी केंद्र का नियंत्रण आवश्यक है।
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