किसान नेताओं को आपराधिक कानूनों से क्या समस्या ? कर दिया दिल्ली घेरने का ऐलान, फिर से बड़े 'खेल' की तैयारी !

किसान नेताओं को आपराधिक कानूनों से क्या समस्या ? कर दिया दिल्ली घेरने का ऐलान, फिर से बड़े 'खेल' की तैयारी !
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नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी के दौरान, किसान विरोध प्रदर्शन ने लगभग एक साल तक दिल्ली को घेर रखा था। हाल ही में, ये विरोध प्रदर्शन पंजाब-हरियाणा सीमा पर स्थानांतरित हो गए हैं। विरोध के जवाब में, मोदी सरकार ने तीन कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया था। हालांकि, किसान अब तीन नए आपराधिक कानूनों के विरोध में उतर आए हैं। 

दरअसल, भारत सरकार ने भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) को क्रमशः भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) से बदल दिया है। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के कानूनों में संशोधन करके उन्हें भारतीय जनमानस के हिसाब से तैयार किया गया है, ताकि पीड़ितों को जल्द न्याय मिल सके। लेकिन, विपक्षी दलों के साथ ही अब किसान संगठन इसके विरोध में उतर आए हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार, किसान मजदूर मोर्चा और संयुक्त किसान मोर्चा सहित किसान समूहों ने इन नए कानूनों का विरोध किया है। योजनाओं में दिल्ली में कानूनों की प्रतियां जलाना, किसानों को राजधानी की सीमाओं पर बुलाना और स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) पर ट्रैक्टर मार्च आयोजित करना शामिल है। 1 अगस्त को मोदी सरकार की अर्थी जलाने का कार्यक्रम रखा गया है, जिसके बाद देश भर में जिला मुख्यालयों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए प्रदर्शन करने की भी योजना बनाई है। किसान 31 अगस्त को 200 दिनों तक चलने वाले विस्तारित विरोध प्रदर्शन के लिए आपूर्ति के साथ शंभू सीमा पर इकट्ठा होना शुरू हो गए हैं। 15 सितंबर को जींद और 22 सितंबर को पिपली में रैलियां निर्धारित हैं।

हालाँकि, पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा एक सप्ताह के भीतर शंभू सीमा को फिर से खोलने का आदेश देने के बावजूद (एक समय सीमा जो 17 जुलाई को समाप्त हो गई), हरियाणा सरकार ने इस आदेश को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। किसान 13 फरवरी से शंभू सीमा पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, जिससे सरहद ब्लॉक है और लोगों को आने जाने में काफी समस्या हो रही है। यह सीमा पटियाला और अंबाला के बीच स्थित है। गौरतलब है कि गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) पर 2021 के ट्रैक्टर मार्च के दौरान हिंसा भड़क उठी थी और लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराया गया था।

हालाँकि, किसान नेताओं के इस ऐलान ने कई सवालों को भी जन्म दे दिया है। यह देखते हुए कि कृषि कानूनों का किसानों पर सीधा असर पड़ता है, उनका विरोध समझ में आता है। लेकिन किसानों को नए आपराधिक कानूनों से क्या परेशानी है, जिनकी तारीफ भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने भी की है? क्या कुछ किसान नेता दूसरों को भड़काकर राजनीतिक अशांति पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं? चूंकि विपक्षी दल भी इन आपराधिक कानूनों का विरोध कर रहे हैं, तो क्या किसानों को राजनीतिक मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है?

देश के 86 फीसद किसान चाहते थे कृषि कानून :-  

उल्लेखनीय है कि, किसान आंदोलन के समय भी ऐसा ही भ्रम फैलाया गया था, जिसके कारण कृषि कानून वापस लिए जाने के बावजूद आज तक आंदोलन नहीं थमा है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था, जहाँ अदालत ने नए कृषि कानूनों की समीक्षा करने के लिए एक कमिटी का गठन किया था। सुप्रीम कोर्ट की इस कमिटी में कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी और किसान नेता अनिल घनवट (शेतकारी संगठन के अध्यक्ष, महाराष्ट्र स्थित किसान संघ) सदस्य थे। जोशी भी कृषि शोध के क्षेत्र में एक प्रमुख नाम हैं. वो हैदराबाद के नैशनल एकेडमी ऑफ़ एग्रीकल्चरल रिसर्च मैनेजमेंट और नैशनल सेंटर फ़ॉर एग्रीकल्चरल इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च, नई दिल्ली के प्रमुख रह चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने 4 सदस्यीय टीम बनाई थी, लेकिन भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता भूपिंदर सिंह मान ने इससे अपने आप को अलग कर लिया था। इन लोगों को किसान संगठनों से बातचीत कर और किसानों की राय जानकर सुप्रीम कोर्ट को बताना था कि, देशभर के किसान वास्तव में कृषि कानूनों के बारे में क्या सोचते हैं ?

रिपोर्ट बनी और 21 मार्च 2021 को सर्वोच्च न्यायालय में जमा कर दी गई। सरकार इस फ़िराक़ में थी कि, सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट के बाद ही सही, लेकिन किसान इसके फायदे को समझेंगे और आंदोलन वापस ले लेंगे। किसान समझ भी जाते, अगर राजनेता उन्हें समझने देते, लेकिन विपक्ष को सरकार के खिलाफ जलती इस आग में लगातार ईंधन डाल रहा था, राकेश टिकैत के साथ कई विपक्षी नेताओं ने भाषण दिए और उन्हें चुनावी रैलियों में आयोजित कर ये जाहिर कर दिया कि मामला किसानों का कम और राजनितिक अधिक है। हालाँकि, देश को ग्रेटा, रेहाना, मिया खलीफा जैसे लोगों के ट्वीट दिखाए जाते रहे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट नहीं। आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट का रास्ता देखकर थकने के बाद, 700 किसानों की मौत और 12 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 नवंबर 2021 को कृषि कानून वापस ले लिए। उनके शब्द थे, 'ये कानून किसानों के हित के लिए लाए गए थे और देश हित में वापस लिए जा रहे हैं।'   

रिपोर्ट जमा होने के लगभग एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट की वो रिपोर्ट सामने आई, जिस पर ज्यादा चर्चा भी नहीं हुई। मार्च 2022 में सामने आई, जिसमे बताया गया था कि, देश के 86 फीसद किसान संगठन इन कानूनों के पक्ष में हैं। SC की कमेटी ने 73 किसान संगठनों से बात की थी. इन संगठनों में 3.83 करोड़ किसान जुड़े थे, 61 किसान संगठनों ने तीनों कृषि कानूनों का समर्थन किया था. इसमें 3.3 करोड़ किसान थे। रिपोर्ट के अनुसार, 51 लाख किसानों वाले 4 संगठन कानूनों के खिलाफ थे। जबकि 3.6 लाख किसानों वाले 7 संगठन कुछ सुधारों के साथ कानूनों के समर्थन में थे. वहीं, 500 किसानों वाला एक संगठन कोई राय नहीं बना सका था। यानी कुछ 50 -60 लाख किसान इसके विरोध में थे, जबकि 3 करोड़ समर्थन में, फिर भी कानून वापस हो गए। क्योंकि, उन 50 लाख ने सड़कें जाम की, लाल किले पर हिंसा की, और समर्थक 3 करोड़ अपने खेतों में काम करते रहे। 

 

बाद में यूपी चुनाव (2022) में भाजपा की जीत के बाद उस समय किसान आंदोलन में शामिल योगेंद्र यादव ने कहा कि हमने तो विपक्ष के लिए पिच तैयार कर दी थी, विपक्ष ही इस पर बैटिंग नहीं कर सका। आप गौर करें तो पाएंगे कि, 700 किसानों कि लाशें और 12 लाख करोड़ का देश का नुकसान, विपक्ष को चुनाव जिताने की पिच थी। कुछ ऐसा ही CAA-NRC में भी हुआ, इसके भी समर्थक काफी अधिक थे, विरोधी बहुत कम, लेकिन समर्थकों ने चक्का जाम या हिंसा नहीं की, जबकि विरोधियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। अभी अग्निवीर के लिए भी ऐसा ही माहौल बनाया जा रहा है, जबकि एक लाख अग्निवीर सेना में भर्ती हो चुके हैं और 50 हज़ार लाइन में हैं। वहीं, किसान नेताओं ने अब आपराधिक कानूनों का विरोध करने का बीड़ा उठाया है, और दिल्ली घेरने, सरकार की अर्थी जलाने का ऐलान किया है। आखिर, कुछ महीनों में हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड के चुनाव भी तो हैं, पिच तो तैयार करनी पड़ेगी ना। वैसे आज तक तो यही सुना है कि, लोकतंत्र में जिसके अधिक समर्थक हों, वो विजयी होता है, लेकिन शायद अब भीड़तंत्र चल रहा है, सड़कों पर भीड़ उतार दो और चक्का जाम, हिंसा करके अपनी बात मनवा लो, फिर चाहे वो सही हो या गलत।    

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