व्रत के दौरान फलाहार में क्या खाना चाहिए और क्या-नहीं? जानिए प्रेमानंद महाराज की राय

व्रत के दौरान फलाहार में क्या खाना चाहिए और क्या-नहीं? जानिए प्रेमानंद महाराज की राय
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जाने माने मशहूर संत प्रेमानंद महाराज के सत्संगों को सुनने वाले लाखों लोग उनकी शिक्षाओं से प्रभावित होते हैं, और उनके प्रवचन के वीडियो अक्सर सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते हैं। हाल ही में उनका एक वीडियो चर्चा का केंद्र बना है, जिसमें वह व्रत के दौरान उचित आहार के बारे में मार्गदर्शन दे रहे हैं। यह वीडियो उन लोगों के लिए खासकर उपयोगी है, जो धार्मिक व्रत रखते हैं लेकिन यह सुनिश्चित नहीं कर पाते कि व्रत में क्या खाना चाहिए और किस तरह से अपने आहार को संयमित रखना चाहिए।

फलाहार का महत्व और सही तरीका
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, व्रत के दौरान फलाहार करना सभी जानते हैं, लेकिन अधिकतर लोग इस बारे में जागरूक नहीं होते कि फलाहार की सही मात्रा और तरीका क्या होना चाहिए। फलाहार का मुख्य उद्देश्य शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करना है, लेकिन इसे सीमित और संयमित रखना अत्यंत आवश्यक है। महाराज बताते हैं कि व्रत का सही अर्थ संयम और त्याग है, इसलिए फलाहार करते समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि इसे अति मात्रा में न लें, बल्कि आवश्यकतानुसार सीमित मात्रा में ही ग्रहण करें।

कुट्टू, सिंघारा और समा का चावल: फलाहार या नहीं?
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, व्रत में अक्सर लोग कुट्टू का आटा, सिंघारा और समा का चावल का सेवन करते हैं, जिसे आमतौर पर फलाहार माना जाता है। हालांकि, महाराज का मानना है कि ये वस्तुएं महंगी होती हैं और त्याग का प्रतीक नहीं मानी जातीं। व्रत का उद्देश्य आत्मसंयम और त्याग है, इसलिए इन वस्तुओं का सेवन उचित नहीं है। महाराज का संदेश यह है कि व्रत के समय सादगी और त्याग का पालन करना चाहिए, न कि ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए जो मंहगे और साधारण जन-जीवन से परे हों।

व्रत का पालन कैसे करें
महाराज ने व्रत के पालन के लिए एक स्पष्ट दिनचर्या भी बताई। उनके अनुसार, व्रत का पहला और सबसे महत्वपूर्ण नियम यह है कि सुबह कुछ नहीं खाना चाहिए। दिन के आरंभ में शरीर और मन को शुद्ध और खाली रखना चाहिए, ताकि आध्यात्मिक ऊर्जा और ध्यान को बढ़ावा मिले। हालांकि, दोपहर के समय यानी करीब 12 बजे, थोड़ा पानी पी सकते हैं ताकि शरीर हाइड्रेटेड रहे।

यदि किसी को ज्यादा देर भूखा रहने में कठिनाई हो, तो प्रेमानंद महाराज सलाह देते हैं कि शाम के समय, लगभग 4 बजे के आसपास, थोड़ी मात्रा में फल या दूध का सेवन किया जा सकता है। यह सेवन भी अत्यंत सीमित और संयमित होना चाहिए, ताकि व्रत का मूल उद्देश्य नष्ट न हो। रात के समय किसी भी प्रकार का भोजन नहीं करना चाहिए। महाराज का यह निर्देश उन लोगों के लिए है जो व्रत के महत्व को गहराई से समझते हैं और इसका पालन गंभीरता से करना चाहते हैं।

व्रत का समापन कैसे करें
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, व्रत का समापन अगले दिन सुबह भगवान को भोग अर्पित करने के बाद ही करना चाहिए। यह धार्मिक प्रक्रिया व्रत के आध्यात्मिक महत्व को और भी गहरा बनाती है। भोग लगाने के बाद ही अपना व्रत तोड़ना चाहिए, ताकि व्रत का उद्देश्य पूर्ण हो सके और आध्यात्मिकता में बढ़ोतरी हो।

आध्यात्मिक और शारीरिक लाभ
व्रत केवल शरीर को शुद्ध करने के लिए नहीं है, बल्कि इसका आध्यात्मिक लाभ भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। प्रेमानंद महाराज के अनुसार, व्रत का उद्देश्य शरीर और मन दोनों को संयमित रखना है। संयमित आहार और आत्मसंयम से न केवल व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास भी होता है। व्रत का सही पालन व्यक्ति को अधिक आत्मनियंत्रित और अनुशासित बनाता है।

प्रेमानंद महाराज के इस मार्गदर्शन से स्पष्ट है कि व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक अभ्यास है जो व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। व्रत को सही ढंग से और संयमित रूप में पालन करना ही इसका सच्चा लाभ प्राप्त करने का तरीका है।

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