हर साल विजयादशमी यानी दशहरे का पर्व मनाया जाता है। इस दिन अन्याय के प्रतीक रावण का पुतला फूंका जाता है और सत्य के जीत का जश्न मनाया जाता है। जी दरअसल यह उत्सव प्रभु श्रीराम द्वारा रावण के वध के उपलक्ष्य में देश-विदेश में मनाया जाता है। हालाँकि क्या आप जानते हैं आखिर क्या कारण था कि इस सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के मानस पुत्र ऋषि पुलत्स्य के परिवार में ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बाद भी रावण राक्षस बना? आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं।
जी दरअसल एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु के दर्शन करने सनत, सनंदन ऋषि वैकुंठ पधारे, किंतु उनके द्वारपाल जय और विजय ने बिना आज्ञा प्रवेध देने से इनकार कर दिया। ऋषियों ने क्रोध में उन्हें राक्षस होने का शाप दे दिया तो दोनों ने उनसे क्षमा मांगी। इस बीच जानकारी होने पर विष्णु जी आए और उन्होंने भी क्षमा करने का आग्रह किया तो उन्होंने श्राप की तीव्रता कम करते हुए कहा कि तीन जन्मों तक राक्षस रहने के बाद ही इस योनि से मुक्ति मिलेगी, किंतु इसके लिए विष्णु जी के अवतार से तुम्हें मारना होगा। इस तरह पहले जन्म में वे हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु हुए, फिर दूसरे जन्म में रावण और कुंभकरण के रूप में जन्मे और श्रीराम ने उनका उद्धार किया तथा तीसरे जन्म में वे शिशुपाल और दंतवक्त्र बने, जब श्री कृष्ण ने उनका उद्धार किया। रावण और कुंभकरण के रूप में उन्होंने ऋषि विश्रवा की पत्नी कैकसी के गर्भ से भाई-बहन के साथ जन्म लिया। ऋषि विश्रवा पुलस्त्य ऋषि के पुत्र थे, जो ब्रह्मा जी के मानस पुत्र कहलाते थे और स्वयं ब्रह्मा जी ने उन्हें मनुष्यों के बीच पुराणों के ज्ञान के प्रसार के लिए भेजा था।
रावण का उद्धार - कहा जाता है रावण ने तप करके तमाम सिद्धियां प्राप्त कीं थी और उसने अपना सिर काटकर अग्नि को भेंट कर दिया था। इसी बात से खुश होकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया कि तुम्हें दैत्य, दानव, यक्ष कोई भी नहीं परास्त कर सकेगा, इसीलिए भगवान विष्णु ने नर रूप में श्रीराम बनकर अवतार लिया और वानरों की सहायता से रावण तथा उसके कुल का नाश किया। कहा जाता है ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बाद भी रावण राक्षसी आचरण से सराबोर था और अहंकार के चलते अपने आराध्य भोले शंकर के अवतार हनुमान जी को सामने देखकर भी वह नहीं पहचान सका।
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