नई दिल्ली: अमेरिकी शार्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग (Hindenburg Hesearch) के आरोपों ने अडानी ग्रुप के शेयरों में भूचाल ला दिया है। तमाम कंपनियों के शेयरों में बिकवाली से अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी की नेटवर्थ में भारी गिरावट दर्ज की गई है। एक बार तो अडानी टॉप-20 अमीरों की सूची से भी बाहर गए थे, लेकिन दो दिन बाद ही उन्होंने वापसी की और वापस 17वें स्थान पर पहुँच गए। हालाँकि, हिंडनबर्ग की नेगेटिव रिपोर्ट से ठीक पहले अडानी विश्व के चौथे सबसे रईस व्यक्ति थे।
हालांकि, अडानी समूह ने हिंडनबर्ग के आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हुए इसे केवल झूठ का पुलिंदा बताया है। मगर, इससे बावजूद अडानी की कंपनियों में शेयर 65 फीसदी तक लुढ़क गए हैं। हफ्तेभर की गिरावट के बाद अब एक बार अडानी समूह के शेयरों में थोड़ी बढ़त देखने को मिल रही है। लेकिन, अगर शेयर बाजार के इतिहास और उद्योगपतियों को घेरने के इस खेल पर गौर करें, तो आज से लगभग 40 वर्ष पूर्व उद्योगपति धीरूभाई अंबानी भी कुछ इसी तरह के मामले में घिरे थे। धीरूभाई अंबानी ने उस समय अपनी हिम्मत से इस मामले को निपटाया था और आज भी धीरूभाई अंबानी के उस साहस का जिक्र किया जाता है।
दरअसल, अडानी आज जिस तरह के संकट का सामना कर रहे हैं, वैसा ही कुछ 1982 में धीरूभाई के साथ भी हुआ था। उस समय धीरूभाई ने अपनी समझदारी और साहस से शेयर मार्केट के कुछ बड़े दलालों को दिखा दिया था, कि उनकी कंपनी रिलायंस के साथ खेलना कितना खतरनाक हो सकता है। धीरूभाई के इसी कदम के कारण 18 मार्च 1982 को मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में कोहराम मच गया था। बता दें कि, वर्ष 1977 में धीरूभाई अंबानी ने अपनी कंपनी रिलायंस को शेयर मार्केट में लिस्ट कराने का निर्णय लिया था। उस समय रिलायंस ने 10 रुपये शेयर की दर से लगभग 28 लाख इक्विटी शेयर जारी किए थे। एक साल से कम समय में रिलायंस कंपनी के शेयर की कीमत 5 गुना अधिक बढ़कर 50 रुपये हो गई थी। इसके बाद 1980 में रिलायंस के एक शेयर की कीमत 104 और 1982 में 18 गुना की बढ़त के साथ 186 रुपये हो गई। ठीक उसी तरह, जैसे मौजूदा दौर में अडानी समूह के शेयरों में उछाल आया है। उसके बाद धीरूभाई अंबानी ने डिबेंचर्स के माध्यम से पैसे जुटाने की योजना बनाई। बता दें कि, डिबेंचर्स कंपनियों के लिए कर्ज के जरिए पूंजी एकत्रित करने का एक तरीका है।
हालाँकि, उस समय भी कोलकाता में बैठे शेयर बाजार के कुछ बड़े दलालों ने रिलायंस के शेयरों को गिराने की साजिश रची थी। इसके लिए एकसाथ एक योजना के तहत, बड़े पैमाने पर रिलायंस के शेयर बेचे जाने लगे। दरअसल, दलालों से सोचा था कि गिरते रिलायंस के शेयरों को बड़े निवेशक नहीं खरीदेंगे, और उस वक़्त यह भी नियम था कि कंपनी अपने शेयर खुद नहीं खरीद सकती। यानी एक प्रकार से दलालों ने धीरूभाई अंबानी को गिराकर खुद मुनाफा कमाने की पूरी साजिश रच ली थी, जैसे आज हिंडनबर्ग कर रहा है।
शॉर्ट सेलिंग उस समय भी था साजिश का हिस्सा:-
दरअसल, उस समय भी रिलायंस के शेयर के भाव को गिराने के लिए दलाल 'शॉर्ट सेलिंग' कर रहे थे। दलालों की साजिश थी कि वो ब्रोकरेज से उधार लिए शेयर को कम कीमत होने पर बाजार से खरीदकर लौटा देंगे और बड़ा प्रॉफिट कमाएंगे। इसी साजिश के अनुसार, दलालों ने करीब आधे घंटे में ही रिलायंस के करीब साढ़े 3 लाख शेयर शॉर्ट सेलिंग के माध्यम से बेच दिए। एक साथ इतने अधिक शेयर बिकने से रिलायंस के एक शेयर का भाव 131 से लुढ़ककर 121 रुपये पर आ गया। दरअसल कोलकाता में बैठे दलाल रिलायंस के शेयर के भाव गिराकर अपनी जेबें भरना चाहते थे, यानी 'शॉर्ट सेलिंग' करके। बता दें कि, अडानी पर नेगेटिव रिपोर्ट जारी करने वाली कंपनी हिंडनबर्ग भी 'शॉर्ट सेलिंग' के जरिए ही पैसे कमाती है। यानी, पहले वो रिपोर्ट जारी करके ऐसी स्थितियां पैदा करती हैं कि, कंपनी के शेयर की कीमतें गिरे, और फिर वे शार्ट सेलिंग के जरिए पैसे कमाएं।
यही चाल उस समय के दलालों ने धीरूभाई के साथ चली थी, मगर जैसे ही दलालों की इस चाल के संबंध में धीरूभाई अंबानी को पता चला, तो धीरूभाई ने अपनी सूझबूझ का इस्तेमाल करते हुए कुछ दलालों को रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के शेयर खरीदने के लिए मना लिया। जिसके बाद असली खेल शुरू हुआ, एक ओर कोलकाता में बैठे दलाल मुंबई स्टॉक मार्केट में लगातार रिलायंस के शेयर बेच रहे थे, दूसरी ओर अंबानी के पक्ष वाले दलाल शेयर खरीद रहे थे, जिससे शेयर का भाव नीचे गिरने की जगह ऊपर चढ़ने लगा और फिर शेयर की कीमत बढ़कर 125 रुपये हो गई।
कुल मिलाकर रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के 11 लाख शेयर बिक गए थे और जिसमें से 8 लाख 57 हजार धीरूभाई अंबानी के दलालों ने ही खरीद लिए। इससे कोलकाता में धीरूभाई को गिराकर पैसा कमाने का सपना पाले बैठे दलाल, अपने ही जाल में फंस गए। उसके बाद जब अगला शुक्रवार आया, तो अंबानी के दलालों ने कोलकाता में बैठे दलालों से शेयर मांगे। वायदा व्यापार होने के कारण कोलकाता के दलालों के पास शेयर नहीं थे। 131 रुपये में जुबानी शेयर बेचने वालों की स्थिति खराब हो चली थी। क्योंकि तब तक असली शेयर की कीमत बहुत ऊपर पहुंच चुकी थी और यदि दलाल मोहलत मांगते, तो दलालों को 50 रुपये प्रति शेयर बदला चुकाना पड़ता।
मगर, धीरूभाई के दलालों ने कोलकाता के दलालों को मोहलत देने से मना कर दिया। जिसके बाद दलालों को बड़ा झटका लगा और उन्हें ऊँची कीमतों पर रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के शेयर खरीदकर देने पड़े। उस वक़्त यह मामला इतना बड़ा हो गया था कि 3 दिन तक स्टॉक मार्केट को बंद करना पड़ा था। जिसके बाद फिर रिलायंस ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। धीरूभाई अंबानी के इस कदम से रिटेल निवेशकों को कंपनी के प्रति और भरोसा बढ़ गया है। आज हिंडनबर्ग भी अडानी के खिलाफ वही चाल चलकर मुनाफा कमाने की कोशिश कर रहा है, अब ये देखना दिलचस्प होगा कि, गौतम अडानी इस संकट से कैसे निपटाते हैं।
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