नई दिल्ली: भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserve) इस वक़्त 15 महीनों के शीर्ष पर है। विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 609।02 अरब डॉलर हो चूका है। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) के सोने के भंडार की बात करें, तो इसकी कीमत भी बढ़कर 45.19 अरब डॉलर हो गई है। मगर, एक दौर ऐसा भी आया था, जब हमारे देश के पास विदेशों से सामान आयात करने के लिए विदेशी मुद्रा नहीं बची थी। उस वक़्त भारत को अपना सोना गिरवी when india mortgage gold, रखकर उधार लेना पड़ा था। लेकिन, इस दौरान एक व्यक्ति था, जिसने देश को इस जलालत से बाहर निकालने में अद्भुत योगदान दिया था। यह व्यक्ति हैं, प्रोफेसर जगदीश नटवरलाल भगवती (Jagdish Bhagwati)। बुधवार (2 अगस्त) को ही उन्होंने अपना 90वां जन्मदिन मनाया है।
हम बात कर रहे हैं वर्ष 1991 की, उस समय केंद्र में कुछ समय चंद्रशेखर (राव के पीएम बनने तक कार्यवाहक पीएम) की सरकार रही, और बाकी समय पीएम नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार, और मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। उस वक़्त देश के पास सामान आयत करने के लिए विदेशी मुद्रा ही नहीं बची थी। तब भारत ने अपना 67 टन सोना गिरवी (when india mortgage gold) रखकर 2.2 अरब डॉलर उधार लिए थे। पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने अपनी बुक में इस बारे में जानकारी देते हुए बताया है कि केंद्र सरकार ने सोना गिरवी रखने का फैसला लिया था। मुंबई एयरपोर्ट पर एक चार्टर प्लेन खड़ा था। इस प्लेन में यह पूरा गोल्ड रखवाया गया और प्लेन इंग्लैंड गया। तब जाकर हमें लोन मिला। एक रिपोर्ट के अनुसार, उस समय इसकी (सोना गिरवी रखने की) जानकारी देश की जनता को भी नहीं दी गई थी। एक अख़बार ने जब यह खबर ब्रेक की, तो हर भारतीय दंग रह गया कि, सरकार ने देश चलाने के लिए 6700 किलो सोना (when india mortgage gold) गिरवी रख दिया और जनता को बताया तक नहीं। लेकिन, आज समय बदल चुका है, 1991 में 67 टन सोना गिरवी (when india mortgage gold) रखने वाले भारत ने 2019 से 2023 तक, महज तीन सालों में 178 टन सोना खरीद डाला है। भारत ने गिरवी रखे सोने को तो छुड़ाया ही और आज विश्व के कुल रिजर्व का 8 फीसदी सोना RBI के पास है और आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी 609.02 अरब डॉलर है, यानी हमारे पास 795 टन सोना भी है और सामान आयत करने के लिए भरपूर विदेशी मुद्रा भी, वो भी ऐसी स्थिति में जब देश ने 2 वर्षों तक भीषण कोरोना महामारी का सामना किया है, जब काम-धंधे चौपट हो चुके थे और सरकार को लोगों को मुफ्त राशन बांटना पड़ रहा था, इसके बावजूद कई तरह की समस्याओं से लोग परेशान थे।
बहरहाल, हम बात कर रहे थे, जगदीश भगवती की, जो जाने-माने इकोनॉमिस्ट हैं। आर्थिक सुझावों में उनके योगदान से ही भारत 1991 के आर्थिक संकट से उबर पाया। भारत के इतिहास में साल 1991 के आर्थिक सुधारों को बेहद अहम माना जाता है। इससे पहले भारत की अर्थव्यवस्था इतनी नहीं खुली थी। जुलाई 1991 में भारत आर्थिक उदारीकरण की दिशा में बढ़ चला था, इसका श्रेय तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को भी जाता है। इसके बाद से व्यापार और उद्योगों में अच्छा-ख़ासा उदारीकरण देखने को मिला। भगवती ग्लोबलाइजेशन के बड़े पक्षधर हैं। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण में अहम योगदान दिया था।
वर्ष 1991 की आर्थिक नीतियों के परिवर्तन में जगदीश एन भगवती की काफी भूमिका रही। उन्होंने भारत ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में भी अपना अद्भुत योगदान दिया। वर्ष 2001 में भगवती विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बाहरी सलाहकार थे। वर्ष 2000 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र (UN) में एक विशेष नीति सलाहकार के रूप में काम किया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1991 से 1993 तक वे जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेंड के महानिदेशक के अर्थशास्त्र नीति सालाहकार रहे। वे वर्ष 1968 से 1980 तक मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर भी रहे थे। अर्थव्यवस्था में उनके योगदान के कारण भगवती को वर्ष 2000 में पद्म विभूषण से भी नवाज़ा गया था।
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