जब शास्त्री जी के कहने पर 'भूखा' रहने लगा था पूरा भारत, लेकिन नहीं छोड़ा 'स्वाभिमान'

जब शास्त्री जी के कहने पर 'भूखा' रहने लगा था पूरा भारत, लेकिन नहीं छोड़ा 'स्वाभिमान'
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1964 में देश के प्रथम पीएम जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने पीएम पद संभाला. लेकिन उनके कार्यकाल में कहीं अतिवृष्टि और कहीं सूखा पड़ने की वजह से देश में अनाज का संकट उत्पन्न हो गया. अमेरिका ने उस वक़्त कुछ शर्तों के साथ भारत को अनाज देने की पेशकश की. शास्त्री जी जानते थे कि अमेरिका से अनाज लिया तो देश का स्वाभिमान बुरी तरह टूट जाएगा. ऐसे में उन्होंने एक दिन अपने परिवार को उपवास करने को कहा. शास्त्री जी समेत उनकी पत्नी और बच्चों ने पूरे दिन कुछ नहीं खाया. इससे शास्त्री जी को विश्वास हो गया कि अगर एक दिन भोजन न भी किया जाए तो मनुष्य भूख बर्दाश्त कर लेता है. परिवार पर प्रयोग के बाद उन्होंने देशवासियों से इस संबंध में आह्वान किया.

शास्त्री जी ने देश की जनता से कहा कि 'हमें भारत का स्वाभिमान बनाए रखने के लिए देश के पास मौजूद अनाज से ही काम चलाना होगा. हम किसी भी देश के आगे हाथ नहीं फैला सकते. अगर हमने किसी देश द्वारा अनाज देने की पेशकश को स्वीकार किया, तो यह देश के स्वाभिमान पर गहरा आघात होगा. इसलिए देशवासियों को हफ्ते में एक दिन का उपवास करना चाहिए. इससे देश इतना अनाज बचा लेगा कि अगली उपज तक देश में अनाज की उपलब्धता बनी रहेगी.' उन्होंने देशवासियों से आह्वान करते हुए कहा कि, 'पेट पर रस्सी बांधो, साग-सब्जी अधिक खाओ, हफ्ते में एक दिन एक समय का उपवास करो, देश को अपना मान दो.'

उनके आह्वान का देशवासियों पर काफी प्रभाव पड़ा. लोगों ने बिना किसी हिचक के अपने पीएम के आह्वान पर यकीन किया और देश का स्वाभिमान बचाने के लिए हफ्ते में एक दिन एक समय का खाना त्याग दिया. शहरों से लेकर गांवों-कस्बों तक में महिलाएं, बच्चे, पुरुष, बुजुर्ग सब भूख सहन करते और राष्ट्र के लिए इस 'अनाज-यज्ञ" में अपने हिस्से की आहुति देते. किसी ने कोई शिकायत नहीं की, किसी ने कोई सवाल नहीं किय. यहां तक कि जिन लोगों के घर पर्याप्त अनाज मौजूद था, वे भी उपवास करते और राष्ट्र के लिए भूखे रहते. आखिरकार पूरा भारत अगली फसल आने तक स्वाभिमान के साथ जिया और किसी दूसरे देश से अनाज लेने की नौबत नहीं आई. 

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