कब है आषाढ़ गुप्त नवरात्र की अष्टमी? जानिए शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि

कब है आषाढ़ गुप्त नवरात्र की अष्टमी? जानिए शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि
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गुप्त नवरात्र की अष्टमी तिथि का खास महत्व है। इस दिन जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की पूजा की जाती है। साथ ही विशेष कार्यों में सिद्धि पाने के लिए दुर्गाष्टमी का व्रत भी रखा जाता है। सनातन शास्त्रों में मां दुर्गा की महिमा का गुणगान विस्तार पूर्वक किया गया है। मां दुर्गा के शरणागत रहने वाले जातकों की प्रत्येक इच्छा पूरी होती है। साथ ही घर में खुशियों का आगमन होता है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से आने वाली अड़चनें भी टल जाती हैं। तंत्र सीखने वाले साधक दुर्गाष्टमी पर निशा काल में विशेष साधना कर जगत की देवी को प्रसन्न करते हैं। मां दुर्गा की कृपा से साधक को तंत्र विद्या में सिद्धि मिलती है। 

अष्टमी शुभ मुहूर्त:-
पंचांग के मुताबिक, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 13 जुलाई को दोपहर 03 बजकर 05 मिनट पर आरम्भ होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 14 जुलाई को संध्याकाल 05 बजकर 52 मिनट पर होगा। ज्योतिषीय गणना के मुताबिक, 14 जुलाई को आषाढ़ गुप्त नवरात्र की अष्टमी है।

पूजा विधि 
साधक दुर्गाष्टमी पर ब्रह्म बेला में उठें। इस समय जगत जननी मां दुर्गा को प्रणाम कर दिन का आरम्भ करें। तत्पश्चात, घर की साफ-सफाई कर गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। पूजा गृह में मां की भक्ति-उपासना के लिए पूजा सामाग्री एकत्र कर लें। अब नित्य कर्मों से निवृत्त होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। फिर आचमन कर लाल रंग का वस्त्र धारण करें। अब सबसे पहले सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें। तत्पश्चात, पूजा स्थल पर चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर मां दुर्गा की प्रतिमा या छवि स्थापित करें। इस समय दुर्गा आह्वान मंत्र का उच्चारण करें।

अब पंचोपचार कर मां दुर्गा को लाल रंग का फूल, फल, अक्षत, हल्दी, श्रृंगार की वस्तुएं आदि चीजें चढ़ाएं। प्रसाद में मां दुर्गा को हलवा, पूरी, मिठाई, श्रीफल आदि चीजों का भोग लगाएं। इस वक़्त दुर्गा चालीसा का पाठ तथा मंत्रों का जप करें। वहीं, पूजा के समापन के वक़्त आरती करें। इस समय सुख-समृद्धि की कामना करें। दिन भर उपवास रखें। व्रत उपवास के चलते एक बार जल और एक फल ग्रहण कर सकते हैं। संध्याकाल में आरती कर फलाहार कर सकते हैं। वहीं, मुश्किल साधना करने वाले साधक निशा काल में पूजा के बाद फलाहार करें। अगले दिन स्नान-ध्यान, पूजा-पाठ के बाद पारण करें।

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