छठ पूजा, आस्था और भक्ति का एक विशेष पर्व है, जो प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत, विशेषकर बिहार, झारखंड, और पूर्वी उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। इस पूजा की विशेष धार्मिक मान्यता है और इसे सूर्य देवता और छठी मैया की आराधना के लिए समर्पित किया जाता है।
छठ पूजा की धार्मिक महत्ता
छठ पूजा को घर की खुशहाली और संतान की सलामती के लिए रखा जाता है। यह कठिन व्रत विशेष रूप से महिलाएं करती हैं, जो अपने परिवार की भलाई के लिए सूर्य देवता और छठी मैया का आभार व्यक्त करती हैं। इस पूजा में विभिन्न रीति-रिवाज और पारंपरिक कर्मकांड शामिल होते हैं, जो इसे एक अद्वितीय धार्मिक अनुभव बनाते हैं। छठ पूजा को विभिन्न नामों से भी जाना जाता है, जैसे सूर्य षष्ठी, छठ, छठी, और डाला छठ। यह पर्व मुख्य रूप से सूर्य की उपासना के लिए जाना जाता है, जो जीवनदायिनी ऊर्जा का प्रतीक माने जाते हैं।
छठ पूजा कब है
प्रत्येक वर्ष छठ पूजा दिवाली से 6 दिन पश्चात् की जाती है। पंचांग के मुताबिक, इस वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 7 नवंबर को देर रात 12 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 8 नवंबर को देर रात 12 बजकर 34 मिनट पर होगा। इस प्रकार, 7 नवंबर, बृहस्पतिवार को संध्याकाल का अर्घ्य दिया जाएगा तथा सुबह का अर्घ्य अगले दिन 8 नवंबर को दिया जाएगा।
नहाय-खाय कब होगा
इस वर्ष नहाय-खाय 5 नवंबर, मंगलवार को होगा। पंचांग के मुताबिक, नहाय खाय कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर किया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं गंगा या अन्य किसी पवित्र नदी में स्नान और ध्यान के बाद सूर्य देव की पूजा करती हैं।
खरना कब है
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर खरना मनाया जाता है। खरना के दिन महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं तथा छठी मैया की पूजा में लीन रहती हैं। इस साल खरना 6 नवंबर, बुधवार को है।
डुबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देना
7 नवंबर को छठ पूजा का तीसरा दिन है, जिसमें डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इसके अगले दिन, 8 नवंबर, शुक्रवार को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इसके साथ ही छठ पूजा की समाप्ति होगी।
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