चैत्र माह के कृष्ण कृष्ण पक्ष की दशमी को दशा माता का व्रत रखा जाता है। यह व्रत घर पर आई विपदा व समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है। इस दिन सुहागन महिलांए अपने घर की दशा सुधारने के लिए यह व्रत करती है। इसलिए इस व्रत को दशा माता का व्रत कहा जाता है। इस व्रत के करने से घर में सुख एवं समृद्धि आती है। धन-संपत्ति की पूर्ति होती है। माता की कृपा से घर पर आए हुए प्रदाय समस्याएं दूर हो जाती हैं। इस व्रत में साफ सफाई का बहुत ध्यान रखा जाता है।
कब है दशा माता का व्रत?
साल 2023 मे दशा माता का व्रत 17 मार्च, शुक्रवार को किया जाएगा।
व्रत की पूजन विधि:-
यह व्रत होली के 10 दिन पश्चात् किया जाता है। कहीं-कहीं पर होली के बाद पूरे 10 दिन तक दशा माता की व्रत कथाएं सुनी जाती है। इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है। महिलाएं 10 कच्चे तार का धागा हल्दी में डुबोती हैं। इस धागे में 10 गाँठ लगाकर अपने गले में धारण करती है। इस व्रत में एक वक़्त भोजन करने का नियम है। इस दिन प्रात काल सुहागन स्त्रियां नहा कर बाल धोकर व्रत का संकल्प लेती है। इस दिन नमक खाना भी वर्जित होता है। दशमी तिथि के एक दिन पहले ही घर की जरुरी चीजें खरीद लेनी चाहिए। इस दिन बाजार से कोई भी वस्तु नहीं खरीदनी चाहिए। ऐसी परम्परा है कि यह घर की दशा सुधारने के लिए किया जाता है। इस दिन धन का दान नहीं करने की भी परंपरा हैं।
दशा माता व्रत की विधि व पूजन सामग्री:-
दशा माता के व्रत के दिन पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है। पीपल पर आटे के बने हुए फल व बर्तन चढ़ाए जाते हैं। पीपल के पेड़ पर एक तिजोरी भी चढ़ाई जाती है। उसे वापस घर पर लाया जाता है। पीपल के पेड़ पर महिलाएं 10 परिक्रमा करती हैं तथा 10 बार धागा लपेटती हैं। पीपल के पेड़ पर 10 हल्दी की बिंदिया लगाई जाती है। घर की सुख समृद्धि की कामना की जाती है। इस दिन दशा माता का डोरा गले में धारण किया जाता है। पुराना डोरा पीपल के पेड़ पर चढ़ा दिया जाता है। पीपल के वृक्ष पर अगरबत्ती, दीपक, रोली, चावल, मेहंदी, हल्दी एवं वस्त्र चढ़ाएं जाते हैं। उसके पश्चात राजा नल एवं रानी दमयंती की कथा सुनी सुनाई जाती है। रात्रि को भोजन कर कर व्रत का पालन किया जाता है।
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