बात उस समय की है, जब मेजर ध्यानचंद का करिश्माई हॉकी खेल हर किसी को दीवाना बना चुका था। विश्व के बेहतरीन हॉकी खिलाड़ियों में यदि भारत के किसी एक खिलाड़ी का नाम सबसे पहले सम्मान के साथ लिया जाता था, तो वह मेजर ध्यानचंद ही थे। उन्हें हॉकी में वही मुकाम हासिल रहा है, जो क्रिकेट में डॉन ब्रैडमैन, फुटबॉल में पेले और बॉक्सिंग में मोहम्मद अली को हासिल है। वे भारत के एकमात्र ऐसे हॉकी प्लेयर रहे, जिन्होंने भारत को लगातार तीन ओलिंपिक में गोल्ड मेडल दिलाए और तीनों ओलिंपिक में मेडल जीतने वाली टीम इंडिया का नेतृत्व किया।
14 अगस्त 1936 को बर्लिन ओलिंपिक में भारत और जर्मनी के बीच हॉकी का फाइनल मुकाबला होना था। लगातार बारिश होने की वजह से मैच उस दिन नहीं हो सका। किन्तु उस मुकाबले के प्रति लोगों की दीवानगी का आलम यह था कि अगले दिन 15 अगस्त को जब मुकाबला हुआ तब भी स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। उस वक़्त वहां, जर्मन तानाशाह हिटलर भी मौजूद था। मैदान की गीली जमीन पर मेजर ध्यानचंद बिना जूते पहने, नंगे पैर ही खेले और उन्होंने जर्मनी को बुरी तरह मात दी। मैदान पर नंगे पैर दौड़ते ध्यानचंद का खेल देखकर हिटलर जैसा तानाशाह भी उनका मुरीद बन गया। वह ध्यानचंद के खेल से इतना प्रभावित हुआ कि उन्हें जर्मनी की तरफ से खेलने के बदले में अपनी सेना में उच्च पद देने की पेशकश कर दी।
ध्यानचंद ने बड़ी विनम्रता के साथ हिटलर का प्रस्ताव यह कहते हुए ठुकरा दिया कि भारत उनका देश है जिसे वे अपनी जान से अधिक चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वह अंतिम क्षण तक भारत के लिए ही खेलते रहेंगे। इसे ध्यानचंद के व्यक्तित्व का ही प्रभाव कहिए कि अपना प्रस्ताव ठुकराए जाने के बाद भी हिटलर जैसा तानाशाह उनसे नाराज़ नहीं हुआ और उसने ही मेजर ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ की उपाधि प्रदान की।
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