लखनऊ: बीते कुछ समय में आपने हज़ारों की भीड़ को सड़कों पर 'सिर तन से जुदा' के नारे लगाते हुए सुना होगा, देश के बड़े विश्वविद्यालय जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में आतंकी अफजल गुरु की बरसी मनते देखी होगी, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का सरेआम अपमान करते हुए देखा होगा। लेकिन इनमे से कोई भी 'अपराध' नहीं है, और न ही इन चीज़ों में किसी को जेल हुई, ये अभिव्यक्ति की आज़ादी माना जाता है। मगर एक समय था, जब लोकतांत्रिक देश भारत में ''रामभक्ति'' अपराध था, इसके लिए बाकायदा धारा बनाई गई थी और पुलिस गिरफ्तार करने वालों को इसका प्रमाणपत्र भी देती थी।
ये सुनने में आपको जरूर अजीब लग सकता है, क्योंकि ये कुछ ऐसी चीज़ें हैं, जो मीडिया में आने ही नहीं दी गईं या डर ही इतना था कि पीड़ित लोग भी खामोश रहे। किन्तु अब जब, अयोध्या में भव्य राम मंदिर के उद्घाटन की तैयारियां चल रहीं हैं, तो लोगों में कुछ हिम्मत दिखाई दे रही है, कि वे बोल सकते हैं, अपनी पीड़ा बता सकते हैं और उनकी सुनवाई होगी। अब दबे-पुराने किस्से सोशल मीडिया के जरिए लोगों के सामने आने लगे हैं। ऐसा ही एक किस्सा 1990 से जुड़ा हुआ है, जब अयोध्या, काशी, मथुरा, प्रयाग जैसी तीर्थनगरियों के होने का गौरव रखने वाले उत्तर प्रदेश में 'रामभक्ति' एक अपराध माना जाता था। गले में भगवा गमछा और सिर पर तिलक लगाना आपको सलाखों के पीछे भेज सकता था।
1990 मे उप्र की तत्कालीन समाजवादी सरकार ने #रामभक्ति को अपराध की श्रेणी मे रखा था, आज समाजवादी पार्टी के नेता उन्ही श्रीराम जी की भक्ति करने को लालायित हैं। यह युग परिवर्तन ही तो है #जयश्रीराम pic.twitter.com/QjGmWx8bA9
— विधायक जी ???????? (@Sanchicasm) January 6, 2024
1990 में पूरे देश से लोग कारसेवा के लिए अयोध्या जा रहे थे। देश के कई हिस्सों की तरह ही अलीगढ़ के लोगों में भी रामभक्ति उफान पर थी। उन दिनों राज्य में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकार थी। यह सरकार रामभक्तों को रोकने के लिए हर तरह की शक्तियों का इस्तेमाल कर रही थी। रामभक्तों को रोकने के इन्ही उपायों में शामिल था ‘रामभक्ति चालान’। आज की पीढ़ी ने तो इसका नाम भी नहीं सुना होगा, लेकिन इसके पीड़ित अभी जीवित हैं, और वो खुद अपनी कहानी सुना रहे हैं।
उस समय कारसेवा करने की इच्छा रखने वाले लोगों को यूपी के अलग-अलग हिस्सों में रोका जा रहा था, अलीगढ़ में भी कारसेवकों को अरेस्ट कर जेल में ठूंसा जा रहा था। इन्हीं कारसेवकों में शामिल थे 23 वर्षीय मनोज कुमार अग्रवाल, जिन्हे अलीगढ़ रेलवे स्टेशन से अरेस्ट कर लिया गया था। मनोज अग्रवाल को जेल में डालते वक़्त एक प्रमाण पत्र दिया गया था, जिसमें लिखा था कि उनका जुर्म क्या है और किस धारा के तहत उन्हें अरेस्ट किया गया है। उस प्रमाण पत्र पर बकायदा लिखा हुआ है कि, उनका चालान 'रामभक्ति' के कारण हुआ। प्रमाणपत्र में धारा तो 107/116 लिखी हुई है, लेकिन आगे लिखा है ‘रामभक्त चालानी’।
उस समय को याद करते हुए रामभक्त मनोज कुमार अग्रवाल बताते हैं कि उनके जैसे सैकड़ों लोगों को पूरे उत्तर प्रदेश में रोका गया था। लेकिन अलीगढ़ ही ऐसा जिला था, जहाँ लोगों को ‘रामभक्ति चालानी’ वाले प्रमाणपत्र पकड़ाए गए थे। मनोज उस समय को याद करते हुए हैं कि, 'हम जैसे जीवित कारसेवकों का जुर्म ये था कि हम रामभक्ति में लीन थे। हमारे दस्तावेज़ भी यही बताते हैं।' मनोज को जेल के दिन भी अच्छी तरह याद हैं, वे बताते हैं कि, 'अलीगढ़ जेल में भजन होता था। उस दौरान अलीगढ़ के जेलर एसडी अवस्थी थे, जिनकी मुहर भी रामभक्ति चालानी वाले प्रमाणपत्र में मौजूद है। वो रामभक्तों के प्रति थोड़ा नरम भाव रखते थे। जेल में सैकड़ों लोग बंद थे और हर दिन सैकड़ों लोगों से मिलने उनके परिवार वाले आया करते थे, मगर बाहर मुलायम की सरकार का आतंक था।'
मनोज अग्रवाल का यहाँ तक दावा है कि, 'उस समय केसरिया पत्ता पहने और तिलक लगाए लोगों को भी पुलिस अरेस्ट कर लेती थी, कि कहीं ये अयोध्या न जा रहा हो लोग राम-राम कहने से भी डरते थे, कहीं पुलिस उन्हें आंदोलनकारी समझकर पकड़ न ले , ये मुग़ल काल जैसा जमाना था।' मनोज अग्रवाल बताते हैं कि, “अलीगढ़ मुस्लिम बहुल इलाका था, उस दौरान वहां जमकर दंगे भी हुए और प्रशासन बहुसंख्यकों का दमन कर ही रहा था। जेल में ठूंसकर लोगों के घुटनों पर इतनी लाठियाँ मारी गई थी, आज भी पुरवाई हवा चलती है तो दर्द होता है।'
मनोज कुमार अग्रवाल आज के समय को देखते हुए कहते हैं कि, उस वक़्त राम भक्ति को अपराध बताने वाले आज खुद को राम भक्त कहते हैं, ये समय का चक्र है। पहले जो लोग सुप्रीम कोर्ट में बाकायदा हलफनामा देकर राम को काल्पनिक बताते थे, रामसेतु के अस्तित्व को नकारते थे। राम मंदिर के स्थान पर अस्पताल- शौचालय आदि बनाने की बात करते थे, वो आज खुद को राम भक्त बता रहे हैं, लेकिन उन्हें क्या ही कहा जाए। मनोज बताते हैं कि, मुलायम सिंह ने उस समय कारसेवकों पर गोलियां भी चलवाईं थी, ये बड़ी खबर थी, जो मीडिया में आई, लेकिन कई चीज़ें दबकर रह गईं, उनकी इन्ही कार्रवाइयों के कारण उन्हें मुल्ला मुलायम नाम मिला था और वे मुस्लिमों के मसीहा बन गए थे।