संजय गांधी ने अपनी माँ इंदिरा को मारे 6 थप्पड़..? आपातकाल का अनसुना किस्सा

संजय गांधी ने अपनी माँ इंदिरा को मारे 6 थप्पड़..? आपातकाल का अनसुना किस्सा
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नई दिल्ली: आज 14 दिसंबर, 2024 को संजय गांधी की जयंती है। भारतीय राजनीति में उनका स्थान एक ऐसा अध्याय है, जो ना केवल उनकी कड़ी नीतियों, बल्कि उनके सपनों और जीवन के उतार-चढ़ाव के कारण हमेशा चर्चा में रहा। इंदिरा गांधी के छोटे बेटे और राजीव गांधी के छोटे भाई संजय ने केवल 33 साल की उम्र में भारतीय राजनीति पर अपनी गहरी छाप छोड़ी। उनकी जिंदगी में कई ऐसे पहलू और किस्से हैं, जो आज भी लोगों के बीच चर्चा का विषय हैं।  

मारुती मोटर्स की शुरुआत:-
14 दिसंबर 1946 को जन्मे संजय गांधी का झुकाव शुरू से ही राजनीति और प्रशासन की ओर था। पढ़ाई के बाद उन्होंने रॉल्स-रॉयस में इंटर्नशिप की और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के प्रति उनका रुझान गहरा हुआ। यह वही समय था, जब उन्होंने भारत में आम आदमी की कार बनाने का सपना देखा। इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने 'मारुति मोटर्स लिमिटेड' की नींव रखी। यह कार भारत में उस समय के मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए एक क्रांति साबित हुई।  

आपातकाल में सुपर PM बने संजय:-
1975-77 के आपातकाल का दौर भारतीय लोकतंत्र में एक काला अध्याय माना जाता है। इस दौरान संजय गांधी की भूमिका को लेकर कई सवाल उठाए गए। कई राजनितिक विश्लेषकों का मानना कि आपातकाल के दौरान संजय ने इंदिरा गांधी की सरकार को अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित किया था। वे उस दौर में देश के सुपर PM की तरह काम कर रहे थे और उनके कुछ फैसले कठोर और तानाशाही प्रवृत्ति के माने गए। आपातकाल का फैसला भी संजय के ही दिमाग की उपज थी। 

1976 में 'परुष नसबंदी' का विवादास्पद फैसला संजय गांधी के जीवन का सबसे चर्चित और आलोचना झेलने वाला कदम था। इस योजना के तहत 16 साल के किशोरों से लेकर 70 साल के बुजुर्गों तक की जबरन नसबंदी कराई गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, एक साल में 60 लाख से अधिक लोगों की नसबंदी की गई। यह फैसला आज भी भारत के बुजुर्गों के बीच डर और नफरत के साथ याद किया जाता है।  

संजय गांधी केवल विवादों के लिए नहीं, बल्कि अपने दूरदर्शी दृष्टिकोण के लिए भी जाने जाते थे। उन्होंने भारतीय युवा कांग्रेस को एक नई पहचान दी। 1970 के दशक में युवा कांग्रेस का नेतृत्व करते हुए उन्होने न केवल राजनीति में नई ऊर्जा का संचार किया, बल्कि अपने नेतृत्व में इसे मजबूत बनाया। संजय गांधी को इंदिरा गांधी का उत्तराधिकारी माना जाता था। कहा जाता है कि आपातकाल के दौरान इंदिरा के कई बड़े फैसलों में संजय की सलाह प्रमुख होती थी। 

प्रेम संबंध और मेनका से शादी:-  
संजय गांधी का व्यक्तिगत जीवन भी किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं था। सबसे पहले उनकी जिंदगी में एक मुस्लिम लड़की आई, किन्तु दोनों के बीच के रिश्तों में जल्द ही दरार आ गई। इसके बाद उन्हें एक जर्मन लड़की सैबीन वॉन स्टीग्लिट्स के साथ इश्क़ हुआ। सैबीन वॉन स्टीग्लिट्स ही वो लड़की थी, जिसने राजीव गांधी को सोनिया गांधी से मिलवाया था और अब सैबिन संजय के करीब आ चुकी थी। दोनों एक दूसरे को कोफी पसंद भी करते थे, मगर किसी अनबन की वजह से दोनों के बीच दूरियां बढ़ गई। बताया जाता है कि, संजय अपने काम पर अधिक ध्यान देते थे, और सैबिन को समय नहीं दे पाते थे, जिसके चलते उनका रिश्ता जल्द ही खत्म हो गया। 

इसके अलावा भी संजय का नाम कुछ महिलाओं के साथ जुड़ा, लेकिन अंततः उनकी मुलाकात 17 साल की मेनका आनंद से हुई, जो आगे चलकर उनकी जीवनसंगिनी बनीं। 23 दिसंबर 1974 को दोनों ने शादी की। यह शादी उनके करीबी मित्र मोहम्मद यूनुस के घर पर हुई। इंदिरा गांधी ने मेनका को 21 साड़ियाँ उपहार में दीं, जिनमें से एक साड़ी खुद जवाहरलाल नेहरू ने जेल में बुनी थी।  

संजय गांधी की जिंदगी 23 जून 1980 को एक विमान दुर्घटना में समाप्त हो गई। सफदरजंग हवाई अड्डे से उड़ान भरते समय उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें उनकी और उनके प्रशिक्षक सुभाष सक्सेना की मृत्यु हो गई। इस घटना ने भारतीय राजनीति को गहरा आघात पहुँचाया।  

इंदिरा को मारे थप्पड़?
संजय गांधी के जीवन में कई विवाद जुड़े। इनमें से सबसे चर्चित किस्सा है इमरजेंसी के दौरान उनकी मां, इंदिरा गांधी को थप्पड़ मारने का। 1977 में 'द वॉशिंगटन पोस्ट' के संवाददाता लुइस एम सिमंस ने अपने एक लेख में दावा किया था कि संजय ने एक डिनर पार्टी में इंदिरा गांधी को छह थप्पड़ मारे थे, ये खबर विदेशी अखबारों में जमकर चली थी। लेकिन, भारत में आपातकाल और मीडिया पर सेंसरशिप लागू होने के चलते नहीं छप पाई। बाद में जब BBC के साथ एक इंटरव्यू में इंदिरा से इस बारे में सवाल किया गया, तो उन्होने इसे ख़ारिज करते हुए कहा कि संजय ने उन्हें कोई थप्पड़ नहीं मारा है। 

संजय गांधी का जीवन भले ही विवादों और असमय मृत्यु के कारण अधूरा रहा हो, लेकिन उनकी विरासत आज भी भारतीय राजनीति और समाज में महसूस की जाती है। मारुति 800 से लेकर युवा कांग्रेस तक, उन्होंने जो पहल की, वह आज भी उनकी दूरदर्शिता का प्रमाण है। उनके कठोर फैसलों और विवादित व्यक्तित्व के बावजूद, यह कहना गलत नहीं होगा कि संजय गांधी ने अपने छोटे जीवनकाल में भारतीय राजनीति और समाज पर गहरी छाप छोड़ी।

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