'जब कंगाल हुआ एक्टर, मजबूरी में छोड़ना पड़ा देश', खुद किया बड़ा खुलासा

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बॉलीवुड फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री अनन्या पांडे इंडस्ट्री की सबसे प्रॉमिसिंग और ग्लैमरस अभिनेत्रियों में से एक हैं, जो अपनी फिल्मों और फैशन के लिए जानी जाती हैं। हालांकि, उनका यह चमकता हुआ सफर उनके पिता चंकी पांडे के कठिन संघर्षों की परछाई में ही पनपा है। अनन्या ने हाल ही में अपने पिता के करियर के उन मुश्किल दिनों के बारे में बात की, जब उन्हें लंबे वक़्त तक काम नहीं मिला था। अब चंकी पांडे ने खुद उन कठिन हालातों को याद करते हुए अपने संघर्ष की कहानी साझा की है।

चंकी पांडे का करियर और शुरुआती सफलता
चंकी पांडे 1980 और 1990 के दशक में बॉलीवुड के लोकप्रिय अभिनेता रहे। उन्होंने 'तेजाब' और 'आंखें' जैसी हिट फिल्मों से पहचान बनाई। अपने शुरुआती करियर में उन्होंने कई हिट फिल्में दीं, और इंडस्ट्री में एक सफल कलाकार के रूप में उभरे। किन्तु 1990 के दशक के मध्य में उनका करियर अचानक ठहराव पर आ गया। चंकी ने बताया कि उस समय फिल्म निर्माता उन्हें लीड रोल देना बंद कर चुके थे, और केवल सपोर्टिंग भूमिकाएं ही मिल रही थीं। एक वक्त ऐसा आया जब उनके पास कोई काम नहीं बचा।

हाल ही में अनन्या पांडे ने अपने पिता के संघर्षपूर्ण दौर के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि जब वह छोटी थीं, तब उनके पिता लंबे समय तक घर पर बैठे रहते थे। उन्होंने बताया कि उनके पिता ने कभी हार नहीं मानी और अपने आत्मसम्मान को बनाए रखा। अनन्या ने बताया कि वह अक्सर सोचती थीं कि उनके पिता उन्हें सेट पर क्यों नहीं ले जाते थे। एक यूट्यूब चैनल पर बेटी अनन्या के साथ बातचीत में चंकी पांडे ने अपने करियर के उस मुश्किल दौर पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा, "जब मेरे पास कोई काम नहीं था, तब मैं पूरी तरह टूट गया था। मुझे काम ढूंढने के लिए भारत छोड़कर बांग्लादेश जाना पड़ा। वहाँ जाकर मैंने फिल्में करनी शुरू कीं।"

चंकी ने यह भी बताया कि उन्होंने अपनी बेटी को कभी सेट पर नहीं बुलाया, क्योंकि वह स्वयं उस वक़्त मानसिक और आर्थिक दबाव में थे। उन्होंने अनन्या से कहा, "जब मेरी और तुम्हारी मम्मी की शादी हुई, तब मैं अपने करियर के सबसे बुरे दौर में था। मैं बांग्लादेश से लौटकर काम की तलाश कर रहा था। उस स्थिति में मैं सेट पर तुम्हें और तुम्हारी मम्मी को बुलाने की हिम्मत नहीं कर पाया।" भारत में अपने करियर के ठहराव के बाद चंकी पांडे ने बांग्लादेश का रुख किया। वहाँ उनके करियर को एक नया मोड़ मिला। चंकी ने बताया, "फिल्म 'आंखें' के बाद मेरे पास कोई काम नहीं था। केवल 'तीसरा कौन' नाम की एक फिल्म मिली, मगर उसके बाद सब बंद हो गया। तब मैंने बांग्लादेश में फिल्में करनी शुरू कीं, और किस्मत से वे चलने लगीं। अगले 4-5 साल तक बांग्लादेश मेरा दूसरा घर बन गया था।"

चंकी ने बताया कि बांग्लादेश में उन्हें नायक के रूप में काम मिला, और उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रहीं। वहाँ उन्होंने अपनी पहचान बनाई और एक नई शुरुआत की। अपने संघर्षों के बारे में चर्चा करते हुए चंकी ने कहा कि उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने बताया, "मैंने काम करना नहीं छोड़ा। मैंने बांग्लादेश में एक इवेंट कंपनी खोली और इवेंट्स करने लगा। प्रॉपर्टी डीलिंग शुरू की एवं जमीन के सौदे किए। मैंने अपनी ईगो को दबा दिया और खुद से कहा कि मुझे हर हाल में सर्वाइव करना है।" चंकी ने यह भी बताया कि उन्होंने अपने माता-पिता या पत्नी को कभी अपनी समस्याओं का अंदाजा नहीं होने दिया। उन्होंने अपने संघर्ष को अकेले झेला और इसे अपने परिवार से छिपाया।

अपने कठिन दौर के बारे में बात करते हुए चंकी ने स्वीकार किया कि यह वक्त उन्हें बहुत कुछ सिखा गया। उन्होंने कहा कि संघर्ष ने उन्हें जमीनी हकीकत से जोड़ा और जीवन के प्रति उनके नजरिए को बदला। उन्होंने कहा, "मैंने सीखा कि जीवन में मुश्किलें आएंगी, लेकिन उन्हें पार करने का हौसला होना चाहिए। अगर आप मेहनत करना नहीं छोड़ते, तो सफलता आपको एक न एक दिन जरूर मिलती है।"

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