लखनऊ: जहाँ एक तरफ देश भर में बेटी बचाओ अभियान चलाए जा रहे है. वही दूसरी तरफ इन देशव्यापी अभियान के बीच एक डॉक्टर को बेटी पैदा हुई तो पति द्वारा तलाक मांगने का मामला सामना आया है. यह स्थिति तब है जब डॉक्टर के सास-ससुर भी डॉक्टर हैं. पीड़ित डॉक्टर ने उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल में शिकायत की तो काउंसिल ने सास-ससुर को निलंबित कर दिया है.
जानकारी के अनुसार, लखनऊ के इंदिरा नगर में रहने वाली डॉ. प्रकृति शुक्ला ने उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल में नौ जून, 2016 को शिकायत कर न्याय की गुहार लगाई थी. एमबीबीएस के बाद एमडी (पैथोलॉजी) करने वाली डॉ. प्रकृति ने अपनी शिकायत और फिर काउंसिल की एथिकल कमेटी की 30 जून को हुई सुनवाई में बताया कि उनकी गर्भावस्था के दौरान 11 नवंबर, 2015 को उन्हें तेज बुखार आया तो उन्होंने पति तुषार ओझा को इसकी जानकारी दी.
पति उन्हें ससुर डॉ.एसवी ओझा के सुभाष मार्ग स्थित ओझा डायग्नोस्टिक सेंटर ले गए. डॉ. प्रकृति के अनुसार वे नहीं चाहती थीं कि उनके ससुर अल्ट्रासाउंड करें, इसके बावजूद डॉ.एसवी ओझा ने खुद अल्ट्रासाउंड किया. इसके बाद उन्हें सास डॉ. शालिनी चंद्रा के रकाबगंज स्थित अस्पताल में ले जाया गया. डॉ. प्रकृति का कहना है कि अल्ट्रासाउंड होने के बाद पूरे परिवार का व्यवहार बदल गया.
पति व सास ने गर्भपात कराने को कहा किन्तु वह नहीं मानीं. इस पर अपने अजन्मे बच्चे को बचाने के लिए अलीगंज स्थित अपनी ससुराल से इंदिरा नगर स्थित अपने मायके चली गईं. 28 मार्च को उन्होंने एक निजी नर्सिंग होम में बेटी को जन्म दिया. पूरा ओझा परिवार उनसे मिलने सिर्फ एक बार आया और बाद में एक बार ही पति उनके घर गए.
बेटी के जन्म के एक माह के बाद पति ने तलाक का नोटिस जरूर भेज दिया. शुक्रवार को हुई काउंसिल के शासी निकाय (गवर्निंग बॉडी) की बैठक में डॉ. एसवी ओझा व उनकी पत्नी डॉ.शालिनी चंद्रा को लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम का दोषी पाया गया. डॉ. एसवी ओझा को एक साल और डॉ.शालिनी चंद्रा को छह माह के लिए निलंबित कर दिया गया है.