सितंबर में कब-कब रखा जाएगा प्रदोष व्रत? यहाँ जानिए शुभ मुहूर्त और पूजन-विधि

सितंबर में कब-कब रखा जाएगा प्रदोष व्रत? यहाँ जानिए शुभ मुहूर्त और पूजन-विधि
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सितंबर महीने में प्रदोष व्रत महादेव को समर्पित है। इस दिन व्रत करके संध्या के समय शिव भगवान और उनके परिवार की आराधना की जाती है। सनातन धर्म में भाद्रपद प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है, और माना जाता है कि इससे सभी कष्ट दूर हो सकते हैं। इस महीने में प्रदोष व्रत की दो तिथियाँ होती हैं। दृक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद महीने की शुक्ल त्रयोदशी तिथि 15 सितंबर को प्रारम्भ होगी तथा 16 सितंबर की दोपहर तक रहेगी। इस प्रकार, सितंबर का पहला शुक्ल प्रदोष व्रत 15 सितंबर को होगा। वहीं, आश्विन महीने की कृष्ण त्रयोदशी तिथि 29 सितंबर को प्रारम्भ होगी और 30 सितंबर की शाम तक रहेगी। इसलिए, सितंबर का दूसरा कृष्ण प्रदोष व्रत 29 सितंबर को होगा।

सितंबर प्रदोष व्रत के शुभ मुहूर्त:
शुक्ल त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ: 15 सितंबर, 2024 को 18:12 बजे
शुक्ल त्रयोदशी तिथि समाप्त: 16 सितंबर, 2024 को 15:10 बजे
दिन का प्रदोष समय: 18:26 से 20:46
रवि शुक्ल प्रदोष व्रत पूजा मुहूर्त: 18:26 से 20:46
अवधि: 2 घंटे 20 मिनट
कृष्ण त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ: 29 सितंबर, 2024 को 16:47 बजे
कृष्ण त्रयोदशी तिथि समाप्त: 30 सितंबर, 2024 को 19:06 बजे
दिन का प्रदोष समय: 18:09 से 20:34
रवि कृष्ण प्रदोष व्रत पूजा मुहूर्त: 18:09 से 20:34
अवधि: 2 घंटे 25 मिनट

पूजा-विधि:
स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनें।
शिव परिवार और सभी देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करें।
व्रत रखने का संकल्प लें और पवित्र जल, फूल, और अक्षत लेकर व्रत की शुरुआत करें।
संध्या के समय दीपक जलाएं और भगवान शिव का अभिषेक करें।
शिव परिवार की पूजा-अर्चना करें और प्रदोष व्रत की कथा सुनें।
घी के दीपक से भगवान शिव की आरती करें।
अंत में "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें और क्षमा प्रार्थना करें।

शिव जी की आरती:
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव…॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव…॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

त्रिगुण रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे॥ ॐ जय शिव…॥

अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।

चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥ ॐ जय शिव…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ॐ जय शिव…॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।

जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ॐ जय शिव…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ॐ जय शिव…॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।

नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥ ॐ जय शिव…॥

त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे।

कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय शिव…॥

जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

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